नई दिल्ली, 20 अप्रैल (आईएएनएस)। श्रीगुरु चरण सरोज रज... रोग, कष्ट या संकट इनसे पार पाने के लिए लोग चिरंजीवी श्रीराम दूत हनुमान जी की शरण में ही जाते हैं। उनको झट से प्रसन्न करना हो या विपदा टालनी हो, हनुमान चालीसा से बढ़कर भला क्या हो सकता है। लेकिन हनुमान चालीसा के बारे में भी एक रोचक तथ्य है, जो आपको शायद नहीं पता होगा।
संकट मोचन की आराधना के लिए पढ़ने वाले हनुमान चालीसा की शुरुआत ‘श्री गुरु चरन सरोज रज...’ से ही क्यों होती है? आइए इससे जुड़े रोचक किस्से से आपका साक्षात्कार कराते हैं!
हनुमान चालीसा में "श्री गुरु चरन सरोज रज..." तुलसीदास जी ने अपने गुरु का सम्मान व्यक्त करते हुए, उनके चरणों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करने की बात कही है। यह दोहा हनुमान चालीसा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्री गुरु चरण सरोज रज से ही क्यों शुरू होती है, इसके पीछे भी एक किवदंती है।
इस बारे में काशी के ज्योतिषाचार्य, यज्ञाचार्य एवं वैदिक कर्मकांडी पं. रत्नेश त्रिपाठी बताते हैं, “हनुमान चालीसा तुलसीदास ने लिखी है लेकिन हनुमान चालीसा की रचना को लेकर कई कथाएं लोकप्रिय हैं। कहते हैं कि जब तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा लिखना शुरू किया था, तो लाख कोशिशों के बावजूद वह लिख नहीं पा रहे थे। 40 छंदों वाले संग्रह हनुमान चालीसा को वह रात में लिखते और दूसरे दिन सुबह होते-होते वह मिट जाता था। इस समस्या से वह आजिज आ गए और उन्होंने इस संकट से पार पाने के लिए हनुमान जी की आराधना की, जब हनुमान जी सामने आए तो तुलसीदास ने उनसे अपनी समस्या बताई।"
उन्होंने आगे बताया, "इस पर हनुमान जी ने तुलसीदास से कहा, शुरुआत करनी है तो मेरे प्रभु श्री राम की प्रशंसा के साथ लिखो, मेरी नहीं। कहते हैं कि तुलसीदास ने हनुमान जी को पहली चौपाई सुनाई, जो उन्होंने अयोध्या कांड की शुरुआत में हनुमान चालीसा को शुरू करते हुए लिखा था। "श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊ रघुबर बिमल जसु जो सुखु फल चारि" इस दोहे को सुनने के बाद हनुमान जी ने कहा कि 'मैं रघुवर नहीं हूं'। इस पर तुलसीदास ने जवाब दिया कि 'आप और भगवान श्री राम एक ही हैं। इसलिए आप भी रघुवर हैं।"
तुलसीदास ने एक और तर्क दिया कि जब माता जानकी की खोज में आप लंका स्थित अशोक वाटिका गए थे, तो मां जानकी ने आपको अपना पुत्र बना लिया था। तुलसीदास ने हनुमान जी से कहा कि 'इस प्रकार आप भी रघुवर बन गए' और मेरी यह चालीसा आपके उन्हीं तथ्यों पर आधारित है।"
मान्यता है कि तुलसीदास का यह तर्क हनुमान जी को न केवल भा गया बल्कि इससे उन्हें आत्मज्ञान भी हुआ। इसके बाद तुलसीदास की समस्या हल हो गई और फिर बिना किसी परेशानी के हनुमान चालीसा की रचना संपन्न हुई।
--आईएएनएस
एमटी/केआर
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