रक्षाबंधन सिर्फ़ एक त्यौहार नहीं, स्नेह और परंपरा का संगम है, जो न सिर्फ़ रिश्तों को मज़बूत करता है, बल्कि किसी शहर की तकदीर भी संवारता है। जोधपुर में स्नेह का यह धागा अब हज़ारों कलाइयों की शोभा बढ़ाने के साथ-साथ पाँच सौ से ज़्यादा परिवारों की रोज़ी-रोटी का ज़रिया बन गया है।जोधपुर में बनी राखियाँ देश भर में लोकप्रिय हैं और हर साल इनका व्यापार लाखों का होता है। राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले जोधपुर की यह कहानी साल 1950 से शुरू होती है, जब आर्य नथमल गहलोत और उनके भाई ताराचंद ने घर के एक कोने से राखी निर्माण की नींव रखी। मोतियों और ज़री से बनी कलात्मक राखियों ने जैसे-जैसे लोगों का दिल जीता, यह छोटा सा काम एक बड़े उद्योग में बदल गया।
हर राखी में एक कहानी छिपी है
आज स्थिति यह है कि जोधपुर में साल भर राखियों का निर्माण जारी रहता है। पारंपरिक कलाओं में निपुण महिलाएँ घर बैठे आधुनिक डिज़ाइनों की राखियाँ तैयार कर रही हैं। इनमें से ज़्यादातर महिलाएँ दूरदराज के गाँवों और बस्तियों से हैं, जिनके लिए यह काम आत्मनिर्भरता की राह बन गया है। प्रमुख राखी निर्माता किशनलाल गहलोत के अनुसार, राखी निर्माण की शुरुआत छोटी थी, लेकिन आज हमारी राखियाँ कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कोलकाता और अहमदाबाद तक पहुँचती हैं। नवीनता के संगम के साथ-साथ परंपरा पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।
राखियाँ रोजगार का नया साधन बन गई हैं
वर्ष 1980 के बाद, जब डिज़ाइन आधारित राखियों की माँग में भारी वृद्धि हुई, तो शहर के विभिन्न मोहल्लों में महिलाओं को संगठित किया गया और उन्हें राखी निर्माण से जोड़ा गया। धीरे-धीरे यह काम साल भर में 500 से ज़्यादा परिवारों के लिए आय का स्रोत बन गया।
1600 से ज़्यादा डिज़ाइन, हर पसंद के लिए कुछ खास
जोधपुर के बाजारों में 1600 से ज़्यादा डिज़ाइनों की राखियाँ उपलब्ध हो गई हैं। पारिवारिक सेट, बच्चों की कार्टून राखियाँ, पारंपरिक मोती-ज़री वाली राखियाँ, पतले धागों वाली ट्रेंडी राखियाँ, हर वर्ग और उम्र के लिए कुछ न कुछ नया है। रक्षाबंधन इस बार 9 अगस्त को है। खुशी की बात यह है कि इस बार भद्रा नहीं है और भाई-बहन पूरे हर्षोल्लास और प्रेम सद्भाव के साथ इस त्योहार को मनाएंगे।
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