दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है। अदालत ने सवाल उठाया कि क्या सरकार को फिल्म में कट और संपादन का आदेश देने का अधिकार है। मामला 2022 में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या पर आधारित फिल्म से जुड़ा है, जिसे सरकार ने पहले कुछ कट के साथ रिलीज़ करने की अनुमति दी थी। अब अदालत ने सरकार से 6 अगस्त तक इस पर पुनर्विचार करने को कहा है।
अदालत का यह फैसला सरकार द्वारा अपने पुराने फैसले को वापस लेने की घोषणा के बाद आया है, जिसमें फिल्म को कुछ कट के साथ रिलीज़ करने की अनुमति दी गई थी। अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि प्रमाणपत्र देने और फिल्मों को रिलीज़ करने से जुड़े मामलों में सेंसर बोर्ड (सिनेमैटोग्राफ एक्ट) के नियमों और कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ने कहा कि सरकार अपने पुराने आदेश को वापस ले रही है। उन्होंने कहा कि हम आदेश केवल इसलिए वापस ले रहे हैं क्योंकि इसकी कार्यप्रणाली (प्रक्रिया) पर सवाल उठाए गए हैं। सरकार ने यह भी कहा कि वह इस मामले पर पुनर्विचार करेगी और उचित निर्णय लेगी।
इससे पहले, अदालत ने सरकार से कड़ा सवाल पूछा और कहा, आप कैसे कह सकते हैं कि हमने फिल्म में कट्स की सिफ़ारिश की है? किस क़ानून के तहत आपको ऐसा करने का अधिकार है? क्या आपके पास ऐसा कोई अधिकार है?
अदालत ने स्पष्ट किया कि फिल्मों के मामले में केंद्र सरकार के पास सिर्फ़ वही अधिकार हैं जो सिनेमैटोग्राफ अधिनियम में दिए गए हैं। अदालत ने कहा कि सरकार सिर्फ़ धारा 5(2) के तहत कुछ सामान्य दिशानिर्देश जारी कर सकती है या धारा 6(2) के तहत किसी फिल्म को प्रमाणन के लिए अयोग्य घोषित कर सकती है। इससे ज़्यादा उसे कुछ करने का अधिकार नहीं है।
अदालत ने कहा कि आप सिर्फ़ ज़रूरी दिशानिर्देश दे सकते हैं या यह तय कर सकते हैं कि कोई फिल्म प्रमाणपत्र के योग्य है या नहीं। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से 4 अगस्त तक अपना पक्ष रखने को कहा, ताकि 8 अगस्त को फिल्म की निर्धारित रिलीज से पहले समय पर फैसला लिया जा सके। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि फिल्म की समीक्षा कर रहे अधिकारी बिना किसी देरी के बुधवार तक अपनी प्रक्रिया पूरी कर लें।
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