दीपावली के दौरान मध्य प्रदेश में 'कार्बाइड गन' फटने की घटनाओं में सैकड़ों लोग घायल हुए हैं.
सिर्फ़ भोपाल में ही 186 लोग ज़ख़्मी हुए, जिनमें ज़्यादातर बच्चे हैं.
भोपाल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा, "अब तक ज़िले में 186 लोगों के कार्बाइड गन से ज़ख़्मी होने की बात सामने आई है. हमने दीपावली के पहले ही 55 कार्बाइड गन ज़ब्त की थी. अब इन पर प्रतिबंध लगाया गया है".
हालांकि प्रशासन का दावा है कि दीपावली के पहले उन्होंने 55 कार्बाइड गन ज़ब्त की थी लेकिन इसके बावजूद कई इलाक़ों में ऐसी कई गन बाज़ारों और घरों तक पहुंच गईं.
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'पता नहीं वो पूरी तरह ठीक होगा भी या नहीं'7 साल के अल्ज़ैन, भोपाल के हमीदिया अस्पताल में बिस्तर पर लेटे हुए कहते हैं, "मैंने यूट्यूब पर देखकर पापा से ज़िद करके कार्बाइड गन मंगवाई थी. एक दिन ठीक चली, अगले दिन अचानक से खेलते-खेलते बंद हो गई. मैं पास जाकर देख रहा था कि क्यों नहीं चल रही तभी उसमें बहुत तेज़ धमाका हुआ. उसके बाद मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया."
इस दौरान अल्ज़ैन लगातार अपनी आंखों से आ रहे पानी को पोंछ रहे थे.
अल्ज़ैन का इलाज़ कर रहीं हमीदिया के नेत्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉक्टर कविता कुमार ने बताया कि उनकी आंखों में कार्बाइड के कण (पार्टिकल्स) गहराई तक घुस चुके थे.
अल्ज़ैन की माँ, आफ़रीन ख़ान, बेटे की आँखों में दवा डालते हुए कहती हैं, "मेरा बेटा उस बंदूक से खेल रहा था. कुछ बार चलने के बाद बंदूक में झांका और धमाका हो गया. पता नहीं वो दोबारा पूरी तरह ठीक होगा भी या नहीं."
हैरानी ये है कि घरों में कार्बाइड गन बनाने की आसान प्रक्रिया सोशल मीडिया पर मौजूद है.
खेती में कार्बाइड गन का इस्तेमाल लंबे समय से बंदरों और पक्षियों को भगाने के लिए किया जाता रहा है, लेकिन इस बार दीपावली में पटाखे के रूप में इसके प्रयोग ने लोगों की चिंता बढ़ा दी.
भोपाल में अब तक 36 मरीजों को अस्पताल में भर्ती किया जा चुका है जिसमें 15 मरीज बेहद गंभीर स्थिति में लाए गए थे जिन्हें सर्जिकल उपचार की ज़रूरत थी. इनमें 10 ऐसे भी हैं जिनकी आँखें कार्बाइड गन से पूरी तरह झुलस चुकी हैं. डॉक्टर अभी यह कहने में असमर्थ हैं कि उनकी दृष्टि कितनी और कब तक लौटेगी.
भोपाल के अलावा मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 29, विदिशा में 20, इंदौर में 40 लोगों समेत अन्य कई ज़िलों से भी कार्बाइड गन से लोगों के घायल होने वाले मामले सामने आए हैं.
भोपाल से लगभग 1000 किलोमीटर दूर बिहार में भी कार्बाइड गन से 170 लोग घायल हुए हैं.
पटना के आईजीआईएमएस (इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस) के प्रमुख डॉक्टर विभूति प्रसन्न सिन्हा ने इन मामलों की पुष्टि की है.
डॉक्टर विभूति प्रसन्न सिन्हा ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा, " बिहार में आए 170 मामलों में से लगभग 40 को सर्जरी की ज़रूरत पड़ी. जिन मरीजों की कॉर्निया को गंभीर चोट पहुंची है, उनके लिए आने वाला समय अच्छा नहीं कहा जा सकता है. कई मामलों में स्थायी दृष्टि हानि या धुंधला दिखना बना रह सकता है."
हालांकि घायलों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है.
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कार्बाइड गन और इस से घायल हो रहे लोगों के शुरुआती मामले भोपाल से रिपोर्ट किए गए.
भोपाल स्थित हमीदिया अस्पताल में नेत्र विभाग में पदस्थ डॉक्टर अदिति दुबे ने बताया कि कार्बाइड गन से चोटिल होने का पहला मामला दीपावली से एक दिन पहले 19 अक्तूबर को आया था.
अल्ज़ैन के बगल वाले बिस्तर पर 14 साल के हेमंत पंथी भी काला चश्मा लगाए लेटे थे.
हेमंत की बाईं आंख में कार्बाइड गन के चलते गहरा घाव हुआ है.
उनके भाई नितिन बताते हैं, "इस 150 रुपये के खिलौने की वजह से मेरे भाई की आंख ख़राब हो गई है. इलाज़ चल रहा है लेकिन उसे बाईं आंख से फिलहाल कुछ नहीं दिखाई दे रहा है. कब और कितना दिखाई देगा ये तो अब समय ही बताएगा".
भोपाल ज़िला कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने बताया, "अब तक इस गैरकानूनी कार्बाइड गन के कारण 186 मामले हमारे संज्ञान में आए हैं, जिनमें से 35 लोगों को भर्ती किया गया था. 10 घायलों की आंखों की रोशनी अभी बाधित है और डॉक्टर्स बता रहे हैं कि उनकी स्थिति में सुधार अगले 6 महीने में धीरे-धीरे होगा."
भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर दूर विदिशा ज़िले के अटल बिहारी बाजपेयी मेडिकल कॉलेज में इलाज़रत 15 साल की नेहा के लिए भी दिवाली परेशानियों से भरी रही.
नेहा बताती हैं, "मैंने अपने बाकी दोस्तों के पास ये गन देखी. मेरा भी मन हुआ तो मैंने भी घरवालों से कह कर कार्बाइड वाली गन खरीद ली. जब वो फटी तो मेरी एक आंख पूरी तरह से जल गई. अभी भी धुंधला धुंधला दिखाई देता है".
मध्य प्रदेश के कई ज़िलों में स्थानीय दुकानों में दीपावली से पहले यह गन 150 से 200 रुपये तक में आसानी से मिल रही थी.
कैल्शियम कार्बाइड भारतीय बाज़ार में कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है जिसमें प्रमुखता से इसका इस्तेमाल वेल्डिंग के कार्यों में होता है. इसके अलावा अवैध तरीकों से फलों को पकाने में भी कार्बाइड का इस्तेमाल होता है.
भोपाल के एक पटाखा व्यवसायी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कार्बाइड गन को पटाखों की तरह ही छोटे सप्लायर्स या असंगठित निर्माताओं से खरीदा गया था.
पटाखा व्यवसायी ने कहा "कार्बाइड गन पहली बार मार्केट में आई थी. पहले मैंने 10 पीस लिए थे जो सस्ते होने के चलते कुछ ही घंटों में बिक गए, इसके बाद और मंगवाए. हर जगह बिक ज़रूर रही थी यह गन लेकिन हमें जानकारी नहीं थी कि ये इतनी ख़तरनाक हो सकती है वरना कोई भी दुकानदार नहीं बेचता."
गन ज़ब्त करने का दावा, फिर बाज़ार में कैसे पहुंचीं?
Amit Maithil/BBC भोपाल ज़िला प्रशासन का दावा है कि दीपावली से पहले कार्बाइड गन की बिक्री रोकने के प्रयास किए गए थे.
इस दावे के बावजूद शहर में कई जगह ये गन बिकती रहीं और हादसे हुए जिनमें दर्जनों बच्चों को नुक़सान पहुंचा.
बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से बातचीत में भोपाल के ज़िला कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने बताया, "हमने दीपावली से पहले 55 कार्बाइड गन ज़ब्त की थीं. इसे बनाना इतना आसान है कि पूरी तरह रोक लगाना मुश्किल रहा."
ज़िला कलेक्टर ने यह भी कहा, " कई मामलों में यह सामने आया कि लोगों ने घरों में ही यह बंदूक बनाई है. लोकल मार्केट या फिर ई-कॉमर्स वेबसाइट से भी मंगवाई गई है."
उन्होंने माना कि प्रशासन को इस तरह के इस्तेमाल की आशंका पहले नहीं थी.
उनका दावा है, "क्योंकि इसके पहले किसी ने भी इसे (कार्बाइड गन) इतना इस्तेमाल नहीं किया, इसलिए शायद आपको, हमें या किसी को भी इसका अंदाज़ा नहीं लगा.''
भोपाल के पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी को बताया, "कैल्शियम कार्बाइड विस्फोटक के अलावा अन्य प्रयोजनों के लिए सामान्य तौर पर बाज़ार में मिलता है. इस बार जो पटाखे के तौर पर गन के रूप में इसका इस्तेमाल सामने आया है वह नया है."
उन्होंने यह भी कहा कि इसका प्रोडक्शन किसी बड़े स्तर पर नहीं हो रहा था.
उनका कहना है, "यह छोटी संख्या में कई जगहों पर बनाकर बेचा गया है. यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया साइट्स पर भी इसे बनाने की विधि मौजूद है. और क्योंकि इसे बनाने में कोई खास खर्च नहीं आता इसलिए मार्केट में भी यह सस्ता था और इसकी लोकप्रियता काफी जल्दी बढ़ी."
जानकारी के मुताबिक़, अक्तूबर की शुरुआत से सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड कर रहा था. कई लड़कों और इन्फ्लुएंसर्स ने रील्स अपलोड कीं, जिनमें पाइप, पानी की बोतल और छोटे रॉकेट जैसी डिवाइस से घर पर गन बनाने और फायर करने का तरीका दिखाया गया.
ज़िला कलेक्टर के मुताबिक़, कार्बाइड गन के ख़तरों को लेकर आम लोगों में जागरूकता की कमी भी एक बड़ी चुनौती रही.
हालांकि, दीपावली से पहले इस गन की मौजूदगी की जानकारी प्रशासन को होने के बावजूद कई लोगों के घायल होने की ज़िम्मेदारी किसकी है, इस पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला.
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ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजिकल सोसाइटी (एआईओएस) के अध्यक्ष डॉ. पार्थ बिस्वास ने बताया है कि बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कैल्शियम कार्बाइड गन से जुड़ी कई चोटों के मामले सामने आए हैं.
डॉ. बिस्वास ने कहा कि एआईओएस ने इन राज्यों की सरकारों से ऐसी गन पर तुरंत प्रतिबंध लगाने की अपील की है. उनके अनुसार, "कई बच्चों की दोनों आंखों में गंभीर चोटें आई हैं, जिनसे स्थायी रूप से दृष्टि खोने का ख़तरा है."
उन्होंने कहा, "इस गन से घायल होने वाले ज़्यादातर बच्चे और किशोर हैं. यह किसी एक राज्य की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय समस्या है. सरकारों को इसे गंभीरता से लेते हुए ऐसे पटाखों पर तुरंत प्रतिबंध लगाना चाहिए."
मध्य प्रदेश में अधिकारियों का कहना है कि कार्बाइड गन ज़्यादातर कृषि क्षेत्र में बंदरों और पक्षियों को भगाने के लिए इस्तेमाल की जाती है.
हालांकि बंदरों और पक्षियों को भगाने वाला यंत्र बच्चों के हाथ कैसे पहुंचा, इसका अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है.
दीपावली के इर्द-गिर्द कई बच्चों की आंखों में गंभीर चोटें आने के बाद भोपाल समेत प्रदेश भर में कैल्शियम कार्बाइड गन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है.
इस बीच, भोपाल के हमीदिया अस्पताल में भर्ती सातवीं कक्षा के आरिश ख़ान के लिए इस साल की दीपावली काली हो गई. उनके लिए अगले कुछ महीने बहुत परेशानी भरे हो सकते हैं.
आरिश ने भी दीपावली के दिन अपने पिता शारिक ख़ान से ज़िद करके यह कार्बाइड गन खरीदवाई थी.
भोपाल के हमीदिया अस्पताल में अन्य परिजनों जैसे ही शारिक अपने बेटे के बिस्तर के बगल में रखे स्टूल पर बैठे थे.
दीपावली के दिन बेटे से हुई बातचीत याद करते हुए उन्होंने कहा, "उसने कहा, अब्बू पूरे मोहल्ले के बच्चों के पास कार्बाइड गन है. बाज़ार में आराम से मिल रही थी तो हमें भी कोई शक़ नहीं हुआ. 150 रुपए के पटाखे ने बच्चे की ज़िंदगी जोख़िम में डाल दी".
कार्बाइड गन के मामले अचानक से बढ़ेभोपाल में दीपावली के एक दिन पहले से ही आने लगे थे मामले. सबसे पहला मामला हमीदिया अस्पताल में रिपोर्ट किया गया था जब एक बच्चे ने कार्बाइड गन के फटने में देरी होने के कारण जिज्ञासावश गन के अंदर झांकने की कोशिश की और उसी दौरान हुए विस्फोट में उसकी आंखें झुलस गईं थी.
हमीदिया में घायल बच्चों के उपचार में पहले दिन से शामिल रहीं डॉक्टर अदिति दुबे ने बताया कि उन्होंने भी पहली बार ऐसे मामले देखे.
डॉक्टर अदिति ने कहा, "आमतौर पर दीपावली के दौरान पटाखों से घायल होने वाले लोग और बच्चे आते हैं लेकिन उनकी संख्या और चोट का प्रकार बहुत अलग होता है. यह पहली बार था कि एक पटाखे के विस्फोट में रसायन या केमिकल से बच्चे घायल हो रहे थे."
दीपावली की रात और उसके अगले दिन का मंज़र याद करते हुए डॉक्टर अदिति कहती हैं, "उस दौरान एक के बाद एक कई बच्चे कार्बाइड गन की चोट से घायल होकर आ रहे थे. कई मामलों में बच्चों की आंखों में पूरी तरह से कार्बाइड भर गया था. बच्चे और उनके परिजन दोनों बहुत कष्ट में थे".
उन्होंने आगे कहा, "हमने अन्य डॉक्टरों से इन ज़ख्मों के बारे में चर्चा की और कार्बाइड के प्रभाव को समझा. इससे बच्चों के इलाज़ में बेहतर काम किया जा सका."
वहीं भोपाल में अधिकारियों ने माना कि समय रहते रोकथाम के कदम नहीं उठाए गए, जिसकी वजह से दीपावली के दौरान ये गन खुलेआम बेची जाती रहीं. अब प्रशासन ने सख्त निगरानी और कानूनी कार्रवाई का आश्वासन दिया है.
क्या है यह ख़तरनाक कार्बाइड गन?
Amit Maithil/BBC आरिश ख़ान (कार्बाइड गन से ज़ख्मी बच्चा) कार्बाइड गन एक देसी यंत्र है, जो पारंपरिक पटाखों की तरह नहीं बल्कि रासायनिक प्रतिक्रिया से धमाका करता है.
इसमें मौजूद कार्बाइड जब पानी से मिलता है तो एसीटिलीन गैस बनती है, जो बेहद ज्वलनशील होती है.
जैसे ही इस गैस को किसी चिंगारी या आग के संपर्क में लाया जाता है, तेज धमाका होता है और जोरदार आवाज निकलती है.
यही कारण है कि इसे अक्सर पशु पक्षियों को भगाने के लिए 'बंदूक' की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
विशेषज्ञों के मुताबिक यह पूरी प्रक्रिया बेहद खतरनाक है क्योंकि गैस का दबाव बढ़ने पर पाइप फट सकता है और लोहे या प्लास्टिक के टुकड़े आंख या चेहरे को बुरी तरह घायल कर सकते हैं.
मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि "जो लोग इन गनों का निर्माण और सप्लाई कर रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई की जाएगी".
उन्होंने कहा कि जब पहले से दिशा-निर्देश मौजूद थे, तब भी इस तरह के उपकरणों को बेचना अपराध की श्रेणी में आता है और इसे लेकर जांच कराई जाएगी.
हालांकि अल्ज़ैन, हेमंत और आरिश जैसे बच्चों के परिजनों का कहना है की ये कार्रवाई बहुत देर से और बहुत कम है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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