मेरा जन्म 1965 में हुआ था. घरवालों ने जन्म की तारीख कभी याद नहीं रखी, लेकिन माँ हमेशा बताती थी कि 'तू तब पैदा हुआ था जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान की 1965 की जंग हुई थी.'
उस समय मुल्क का सदर फील्ड मार्शल आयूब खान था. धन्य भाग हमारे, जब हम पैदा हुए तो पाकिस्तान के पास एक फील्ड मार्शल था.
अब चलने का वक्त आ गया है और पाकिस्तान को एक बार फिर फील्ड मार्शल नसीब हुआ है.
फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि आयूब ख़ान ने अपने कंधों पर खुद ही पाँचवाँ सितारा लगा लिया था.
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जनरल आसिफ़ मुनीर साहब को इस हुकूमत ने खुद फील्ड मार्शल बनाया है. ज़्यादातर पाकिस्तानियों ने आयूब ख़ान को सिर्फ़ तस्वीरों में देखा है.
वह भी जो ट्रकों के पीछे लगी होती हैं.
जिनके नीचे लिखा होता है, "तेरी याद आई तेरे जाने के बाद."
ये भी पढ़ें-यह मुल्क पता नहीं 60 साल बिना फील्ड मार्शल के कैसे चलता रहा. बड़े-बड़े काम करने वाले जनरल आए, लेकिन या तो कोई इतना काबिल नहीं था या फिर कोई इतना नसीबवाला नहीं था कि इस पद तक पहुँच सके.
जनरल आसिम मुनीर को आर्मी चीफ बने अभी ढाई साल ही हुए थे कि हुकूमत ने उन्हें फील्ड मार्शल बना दिया.
लोगों को पता तो था कि ऐसा कोई पद होता है, लेकिन ज़ाहिर है अधिकतर ने ज़िंदगी में कभी फील्ड मार्शल नहीं देखा.
आर्मी चीफ का पहले ही इस मुल्क में बहुत सम्मान है. अब लोगों को यह भी नहीं पता कि फील्ड मार्शल का और कितना सम्मान करना है.
पिछली सरकार के मंत्री कहते थे कि आर्मी चीफ़ कौम का बाप होता है, लेकिन इस हुकूमत ने उन्हें बाप का भी बाप बना दिया है.
अब पता नहीं उन्हें आलीजाह कहना है या माई-बाप कहकर गुजारा करना है.
वैसे सयाने लोग तसल्ली दे रहे हैं कि यह रुतबा उनकी सेवाओं के सम्मान में दिया गया है. उनकी तनख्वाह वही रहेगी, प्लॉट-मुरब्बे भी उतने ही मिलेंगे.
बस अब वह पाँच सितारों वाले जनरल हो गए हैं.
तकनीकी फर्क सिर्फ इतना बताया गया है कि अब जब कोई उन्हें सलाम करेगा, तो जवाब में उन्हें सलाम करने की जरूरत नहीं, वह सिर्फ़ अपनी छड़ी हिला देंगे.
वैसे एक प्रोफेसर साहब ने हमें डरा दिया था कि अगर एक जनरल को इतने प्लॉट और मुरब्बे मिलते हैं, तो फील्ड मार्शल को शायद डिफेंस का पूरा एक फ़ेज देना पड़े, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं है.
फ़ील्ड मार्शल क्या काम करता है?फील्ड मार्शल साहब आयूब खान ने क़ौम की खूब सेवा की. लेकिन जब कौम उनसे थोड़ा बोर हो गई, तो उनके अपने ही वर्दीवाले भाइयों ने जाकर उन्हें समझाया था कि बहुत हो गई क़ौम की सेवा, अब किसी और को भी मौका दो.
फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर भी हमारे जैसे हैं, उन्होंने भी अपनी ज़िंदगी में उपने अलावा कोई फ़ील्ड मार्शल नहीं देखा होगा.
हुकूमत ने बनाया है और मुनीर अल्लाह का हुक्म मानकर बन गए हैं. अब न हम उन्हें बता सकते हैं, न हुकूमत बता सकती है कि फ़ील्ड मार्शल के तौर पर उन्हें करना क्या है.
लेकिन जिसे इतना बड़ा पद मिले, उसका दिल भी थोड़ा बड़ा होना चाहिए.
अगर उन्हें ऐसी इज़्ज़त मिली है जो इस मुल्क़ में पिछले 60 सालों में किसी को नहीं मिली, तो उन्हें जेलों के दरवाजे खोल देने चाहिए.
जो उनके दुश्मन हैं, छोटे-मोटे क़ैदी, चलो इमरान खान का नाम नहीं लेते, लेकिन जो लड़के-लड़कियाँ जिन पर केस हैं या जिन्हें गायब किया गया है, उन्हें बाहर आने देना चाहिए.
दुनिया को भी पता चले, क़ौम को भी पता चले कि इस मुल्क में अब एक फ़ील्ड मार्शल आ गया है.
बाक़ी अगर पुरानी तनख्वाह पर पुरानी नौकरी करनी है, तो इस पाँचवें सितारे का न उन्हें फ़ायदा है, न क़ौम को.
वैसे क़ौम तो उन्हें सलाम करती रहेगी, आगे उनकी मर्जी कि वे सलाम का जवाब सलाम से दें या सिर्फ छड़ी हिला दें.
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