
डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते कैसे होने वाले हैं, इस पर सवाल उठते रहे हैं. राष्ट्रपति ट्रंप हाल के दिनों में भारत को टैरिफ़ किंग तक कह चुके हैं.
सत्ता में आते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के करीब दो घंटे पहले सभी देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ़ लगाकर यह बता दिया कि इस बार उनकी नीति कैसे रहने वाली है.
पीएम मोदी की राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात के बाद टैरिफ़ को लेकर कोई स्थाई समाधान और बड़ी छूट तो नहीं मिली लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापारिक संतुलन बनाने के लिए एक द्विपक्षीय व्यापारिक वार्ता की शुरुआत हो गई.
टैरिफ़ से निपटने के लिए द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते का मसौदा लेकर अमेरिका रवाना हो रहे भारतीय दल से पहले ही अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस सोमवार को परिवार सहित चार दिवसीय यात्रा पर भारत पहुँच गए हैं.
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इस यात्रा में वह नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर रहे हैं. इस दौरान दोनों के बीच अर्थव्यवस्था, व्यापार और भू-राजनीतिक संबंधों को लेकर बातचीत हो सकती है.
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से हुई बातचीत के दौरान वह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी आगे बढ़कर सवाल कर रहे थे.
इतना ही नहीं वेंस ओवल ऑफिस में ही ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर से अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर भी भिड़ गए थे.
म्यूनिख में भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूरोपीय क़ानूनों के ख़िलाफ़ उन्होंने आवाज़ उठाई थी.
इससे एक बात तो साफ़ हो गई कि वह पुराने उप राष्ट्रपतियों की तरह केवल विनम्र राजनीतिक सहायक के रूप में काम करने वाले नहीं हैं. आक्रामक दिखने में भी उन्हें कोई गुरेज़ नहीं है.
वेंस को ट्रंप की विदेश नीति के पीछे के तर्क को स्पष्ट करने वाले नेता के रूप में देखा जा रहा है. वेंस ने जिस तरह से व्हाइट हाउस में ज़ेलेंस्की की आलोचना की उसे रिपब्लिकन पार्टी के बीच व्यापक समर्थन मिला था.
यही वजह है कि कुछ लोग अभी से उन्हें ट्रंप के उत्तराधिकारी के रूप में देख रहे हैं. वह पहले से ही एक ऐसी भूमिका तैयार कर रहे हैं जो तीन साल बाद चुनाव अभियान का आधार बनेगी, जब रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से ट्रंप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं होंगे.

पेरिस में हुए एआई सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उप राष्ट्रपति वेंस से मुलाकात की थी. इस मुलाकात को पर्सनल टच देते हुए पीएम ने वेंस के दो बेटों और एक बेटी को गिफ्ट भी दिया था.
दोनों देशों की यही कोशिश है कि विश्वास बना रहे और द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप दिया जा सके.
भारत के लिए अमेरिका एक बड़ा बाजार है तो अमेरिका के लिए भारत रणनीतिक साझेदार है.
ऐसे में उप राष्ट्रपति वेंस की यात्रा को बहुत ही महत्वपूर्ण कूटनीतिक मिशन के रूप में भी देखा जा रहा है.
इस दौरान वह मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान घोषित भारत-अमेरिका प्रौद्योगिकी साझेदारी ट्रस्ट को भी शुरू कर सकते हैं.
द्विपक्षीय व्यापारिक समझौता
ट्रंप के टैरिफ़ युद्ध के बाद भारत अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते को आकार देने में लगा हुआ है. जिससे दोनों देशों का हित साधते हुए व्यापार को व्यवहारिक बनाया जा सके.
प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं.
वह कहते हैं, "यूं तो यह वेंस की निजी यात्रा है लेकिन इसमें उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री सहित कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों से होगी. ऐसे में इसका दायरा बढ़ जाता है. अमेरिकी विदेश नीति में जिस तरह से उथल पुथल मची है, उसमें वेंस मुखर रूप से अपनी भूमिका निभा रहे हैं."
पंत कहते हैं कि किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत के साथ अमेरिका की अधिक बैठकें हुई हैं.
वह कहते हैं, "डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में विदेश मंत्री जयशंकर और प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा में जो खाका खींचा गया था. उसे कारगर करने की कयावद जारी है."
पंत बताते हैं कि अमेरिकी उप राष्ट्रपति का यह दौरा ब्यूरोक्रेसी के लिए भी यह मैसेज देता है कि सबकुछ पटरी पर है.
"भारत के पक्ष में माहौल"आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान तिवारी कहते हैं, " भारत की ओर से राजेश अग्रवाल कमेटी दो दिन बाद अमेरिका में व्यापारिक समझौते को लेकर वार्ता करेगी. उससे पहले जेडी वेंस भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर रहे हैं. इसलिए इस मुलाक़ात की अहमियत बढ़ जाती है."
अंशुमान तिवारी बताते हैं कि अमेरिका के बड़े साझेदार चीन, कनाडा, मेक्सिको और ईयू टैरिफ़ पर आक्रामक रूख अपनाए हुए हैं. ऐसे में अमेरिका भारत के साथ एक ऐसी डील करना चाहेगा, जिसे वह पूरी दुनिया को दिखा सके.
अंशुमान तिवारी बताते हैं, "दोनों देशों के बीच 19 सेक्टर्स में बात होनी है. इसमें भारत कई सेक्टर में लीड ले सकता है."
वह कहते हैं,"इस समय भारत के पास अपर हैंड है और भारत की बार्गेनिंग पावर भी बढ़ी है. इससे बातचीत एक संतुलित मानदंड पर होगी क्योंकि दोनों ही देशों को इसकी ज़रूरत है. भारत ने कुछ और ताकत दिखाई तो उसे बहुत कुछ हासिल हो सकता है "

हाल के महीनों में इनमें कुछ भारतीय छात्र भी शामिल हैं. इसके साथ ही अवैध प्रवासियों को वापस भेजने का सिलसिला भी जारी है.
प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, "भारत अवैध प्रवासियों के मामले में अमेरिका के साथ खड़ा है. दिल्ली पहले ही बिना दस्तावेज वाले भारतीय प्रवासियों को वापस लेने का संकेत दे चुका है."
पीएम मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात के बाद कहा था कि अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर 'हमारे विचार एक जैसे हैं'. उन्होंने कहा था कि अगर अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे किसी भारतीय की पुष्टि हो जाती है तो हम उन्हें भारत वापस लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.
प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं कि छात्रों के मुद्दे पर भारत अमेरिका से 'संवेदनशील व्यवहार' की मांग कर सकता है. इसके अलावा दोनों देशों की रणनीति में इस मामले को लेकर कोई बदलाव नहीं होता दिख रहा है.
वह कहते हैं, "भारत ही नहीं कोई भी देश इस मामले में अमेरिका को सीधे तौर पर ये नहीं कह पाएगा क्योंकि यह पूरी तरह से उनका घरेलू मामला है."
अंशुमान तिवारी कहते हैं,"अमेरिका इस मामले में भारत को कोई स्पेस नहीं दे रहा है. भारत भी इस मामले को ज़्यादा नहीं उठा रहा है. आईटी सेक्टर में भारत को नुकसान है. ऐसे में यह मामला भारत उठा सकता है."
भारत विरोधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई
अमेरिका ने हाल ही में 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए हमलों के साज़िशकर्ता तहव्वुर राना को भारत प्रत्यर्पित किया है.
इसके अलावा 18 अप्रैल को ही एफबीआई ने पंजाब में चरमपंथी हमला करने के आरोप मेंकर लिया है.
इसे लेकर प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, "ट्रंप जब अच्छे प्रवासियों पर ही प्रश्न उठा रहे हैं तो ऐसे कार्यों में लिप्त लोगों को क्यों अपने यहां रखेंगे. यह पूरी तरह से उनके एजेंडे के अनुकूल है."
प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं कि यह भारत के लिए फ़ायदेमंद है और इसके दूरगामी परिणाम होंगे. अतीत में यह देखा गया है कि भारत पहले वांछित लोगों की लिस्ट सौंपा करता था लेकिन अमेरिका उसपर ध्यान नहीं देता था.
प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं, "इस तरह में मामले में वह असंवेदनशीलता दिखाता था लेकिन अब कार्रवाई हो रही है. यह कहीं न कहीं भारत और अमेरिका के संबंधों को और भी बेहतर कर सकता है."
चीन से मुकाबलावेंस की यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण समय में हो रही है. दोनों देश हिंद और प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते चीन के प्रभाव को रोकना चाहते हैं.
वहीं अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड में शामिल भारत रणनीतिक साझेदार बनकर इस क्षेत्र में संतुलन का केंद्र बना हुआ है.
प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, "ट्रंप सरकार के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए जापान से लेकर फिलीपींस तक की यात्रा की."
पंत कहते हैं कि वेंस इसलिए भी जेलेंस्की पर आक्रामक हुए थे क्योंकि अमेरिका चाहता है कि ये सब झगड़े समाप्त हों ताकि वह पूरी तरह से हिंद और प्रशांत क्षेत्र में अपना ध्यान केंद्रित कर पाए.
इस नज़र से भी वेंस की भारत यात्रा महत्वपूर्ण है.
वह कहते हैं, "अमेरिका चीन पर जितना प्रभावी होगा उसका फायदा निश्चित रूप से भारत को मिलेगा. फिर चाहे वह बात कूटनीति का हो, अर्थनीति का हो, सामरिक मामलों का हो या फिर राजनीतिक सहयोग का."
भारतीय मूल की हैं वेंस की पत्नीवेंस पहली बार भारत की यात्रा कर रहे हैं. इस यात्रा में उनका परिवार भी आ रहा है. वेंस की पत्नी भारतीय मूल की हैं. उनका नाम उषा चिलुकुरी वेंस है.
आंध्रप्रदेश से आने वाली उषा वेंस ने 2014 में जेडी वेंस से विवाह किया था. उषा वेंस के परिवार के लोग अभी भी आंध्रप्रदेश में रहते हैं.
उषा के दादा प्रोफेसर सी रामा शास्त्री आईआईटी मद्रास में भौतिकी विभाग के प्रमुख थे और 96 वर्षीय दादी शांतम्मा भी प्रोफेसर रह चुकी हैं.
38 वर्षीय चिलुकुरी वेंस का लालन-पालन सैन डिएगो में हुआ. उषा के माता-पिता 1970 के दशक के अंत में अमेरिका चले गए थे. उनकी मां कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में जीव विज्ञानी हैं और उनके पिता एक इंजीनियर हैं.
उषा चिलुकुरी वेंस ने गेट्स कैम्ब्रिज छात्रवृत्ति के माध्यम से येल विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री ली है.
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