भारतीय बाज़ारों में आजकल ए1 और ए2 लेबलिंग के साथ दूध, घी, मक्खन जोर-शोर से बेचा जा रहा है.
ख़ासकर 'ए2' घी की मार्केटिंग इस तरह की जा रही है कि ये आम देसी घी से ज्यादा सेहतमंद है.
बाज़ार में आम देसी घी अगर 1000 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है तो 'ए2' घी 3000 रुपये किलो तक बिक रहा है.
डेयरी प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियों का दावा है कि ए2 घी देसी गायों के दूध से बनता है. इसलिए ज़्यादा फ़ायेदमंद है.
उनका दावा है कि इसमें प्राकृतिक तौर पर ए2 बीटा-कैसीन प्रोटीन पाया जाता है. ये प्रोटीन सामान्य दूध में पाए जाने वाले ए1 प्रोटीन की तुलना में पचाने में आसान और शरीर में अंदरूनी सूजन (इन्फ्लेमेशन) कम करने वाला होता है.
ये भी दावा किया गया है कि ये घी ओमेगा-3 फैटी एसिड, कंजुगेटेड लिनोलिक एसिड (सीएलए) और विटामिन ए, डी, ई और के जैसे आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होता है.
ए2 घी के बारे में ये भी दावा किया गया है कि ये पाचन तंत्र को मजबूत करता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और इससे त्वचा में निखार आता है.
इसे दिल की बीमारियों के लिहाज़ से भी अच्छा बताया गया है. डेयरी कंपनियों का ये भी दावा है कि इस घी के सेवन से घाव भी जल्दी भर जाते हैं.
डेयरी प्रोडक्ट कंपनियां इसे एक नए सुपरफूड के तौर पर बेच रही हैं.
ए1 और ए2 के नाम पर डेयरी प्रोडक्ट बेचना कितना सही'फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया' (एफ़एसएसएआई) ने कंपनियों को इस तरह की लेबलिंग के साथ दूध, घी और बटर बेचने के लिए मना किया था. उसका कहना था कि ए2 लेबल के साथ घी बेचना भ्रामक है.
पिछले साल एफ़एसएसएआई ने एक सर्कुलर जारी कर कहा था कि कंपनियों का दूध या उससे बने प्रोडक्ट उत्पादों को ए1 या ए2 लेबलिंग के साथ बेचना ना केवल भ्रामक है, बल्कि फूड सेफ़्टी और स्टैंडर्ड अधिनियम, 2006 और उसके तहत बनाए गए नियमों का उल्लंघन भी है.
एफ़एसएसआई ने कंपनियों को ए1 और ए2 लेबल वाले अपने मौजूदा प्रोडक्ट को छह महीने में ख़त्म करने को कहा था.
हालांकि एफएसएसआई ने एक सप्ताह के अंदर ही अपनी ये एडवाइजरी हटा भी ली थी.
अब सवाल है कि क्या वाक़ई ए1 और ए2 लेबल वाले डेयरी प्रोडक्ट सेहत के लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद हैं.
क्या ए2 घी आम घी की तुलना में शरीर के लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है और इसमें अधिक औषधीय गुण होते हैं.
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ए1 और ए2 का फ़र्क बीटा-कैसीन प्रोटीन पर आधारित है, जो दूध में पाया जाने वाला एक प्रमुख प्रोटीन है. यह फ़र्क मुख्य तौर पर गाय की नस्ल पर निर्भर करता है.
नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज़ (एनएएएस) के रिसर्च पेपर में कहा गया है कि बीटा-कैसीन दूध में पाए जाने वाले प्रमुख प्रोटीन में से एक है.
गाय के दूध में कुल प्रोटीन का 95 फ़ीसदा हिस्सा कैसीन और व्हे प्रोटीन से बनता है. बीटा-कैसीन में अमीनो एसिड का संतुलन बहुत अच्छा होता है.
बीटा-कैसीन दो तरह के होते हैं. ए1 बीटा कैसिन जो यूरोपीय नस्लों की गायों के दूध अधिक पाया जाता है और ए2 बीटा कैसीन जो भारतीय देसी गायों के दूध में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है.
ए1 और ए2 बीटा-कैसीन प्रोटीन अमीनो एसिड स्तर पर अलग होते हैं. इससे प्रोटीन के पचने की प्रक्रिया प्रभावित होती है.
कुछ अध्ययन बताते हैं कि ए2 दूध पचाने में आसान हो सकता है और स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डाल सकता है, लेकिन इस पर अभी और रिसर्च की ज़रूरत है. अपर्याप्त रिसर्च की वजह से ये साबित नहीं हो पाया है कि स्वास्थ्य पर इसका अच्छा असर ही होता है.

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बीबीसी हिंदी ने कुछ एक्सपर्ट्स से ये जानना चाहा कि क्या ए2 घी सचमुच आम घी ज़्यादा फ़ायदेमंद है या फिर इसके बारे में बढ़ा-चढ़ा कर दावे किए जा रहे हैं.
हमारे इस सवाल के जवाब में अमूल के पूर्व एमडी और अब इंडियन डेयरी एसोसिएशन के अध्यक्ष आरएस सोढी ने कहा, '' मैं इस मार्केटिंग तमाशे को देख रहा हूं. ख़ासकर ऑनलाइन मार्केट प्लेस पर. जहां नामी को-ऑपरेटिव और कंपनियां अपना अच्छा से अच्छा घी 600 से 1000 रुपये किलो बेच रही हैं. वहीं ए2 का लेबल लगाकर वैसा ही घी दो से तीन हजार रुपये किलो बेचा जा रहा है. इसका अलग-अलग तरह से प्रचार हो रहा है. कोई इसे बिलौना घी कहकर बेच रहा है तो कोई देसी नस्ल की गाय के दूध से बने सेहतमंद घी के नाम से.''
वह कहते हैं, ''सबसे पहले तो मैं ये साफ़ कर दूं कि ए1 और ए2 एक तरह का प्रोटीन है जो फैटी एसिड चेन से जुड़ा होता है. अब इस बात पर बहस चल रही है कौन अच्छा है तो मैं बता दूं कि इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि इनमें से कौन अच्छा है. ये बहस का विषय है ही नहीं. लेकिन ए2 को अच्छा बताया रहा है जो गलत है. ये बीटा-कैसीन प्रोटीन के दो प्रकार हैं, जिनमें अंतर इस प्रोटीन श्रृंखला के 67वें अमीनो एसिड में बदलाव के कारण होता है.''
आर एस सोढी कहते हैं कि ए2 घी की पौष्टिकता और तथाकथित औषधीय गुणों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर दावे किए जा रहे हैं.
वह कहते हैं, ''लेकिन ये याद रखना चाहिए कि घी वसा के सिवा कुछ नहीं है. इसमें 99.5 फ़ीसदी वसा होती है. बाकी दूसरी चीजें. इसमें प्रोटीन नहीं होता लेकिन इसलिए ये दावा आप कैसे कर सकते हैं कि मेरे घी में ए2 प्रोटीन होता है और शरीर के लिए बेहद फ़ायदेमंद है.''
उनकी नज़र में ये और कुछ नहीं लोगों को बेवकूफ़ बनाना है. इसकी मार्केटिंग कर लोगों को ठगा जा रहा है.
हालांकि वह ये भी कहते हैं ए2 घी बेचने वाले कई ब्रांड आए और चले गए. मार्केट में इनका टिकना मुश्किल है. क्योंकि ये कंपनियां मार्केटिंग पर बहुत ज्यादा खर्च करती हैं और इस वजह से ब़ाजार से बाहर हो जाती हैं.
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स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी ए2 घी के नाम पर बेचे जाने वाले घी का आम घी से ज़्यादा फ़ायदेमंद होने के दावे पर सवाल उठा रहे हैं.
दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलायड साइंसेज की सीनियर डाइटिशियन डॉ. विभूति रस्तोगी ने बीबीसी हिंदी से कहा, '' ए2 घी के नाम पर बेचे जाने वाले घी का आम घी से ज़्यादा फ़ायदेमंद होने का दावा जब तक वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं हो जाता है, तब तक कैसे कहा जा सकता है कि ये घी ज्यादा अच्छा है. "
"दूसरी चीज है कि अगर आप ये दावा करते हैं कि इस तरह के घी को मशीन से नहीं निकाला जाता है. तो सवाल ये है कि दूध से ए2 प्रोटीन कैसे निकाला जा रहा है. ऐसा करना संभव नहीं है. असली बात ये है कि जब तक ए2 घी का आम घी से ज्य़ादा फ़ायदेमंद होना वैज्ञानिक तौर पर साबित नहीं होता तब तक इसे मार्केटिंग का तमाशा ही कहेंगे. अभी ऐसा कोई प्रमाण नहीं आया है कि ए2 प्रोटीन बेहतर है.''
डॉ. रस्तोगी का भी यही कहना है कि घी को तो प्रोटीन के लिए खाया ही नहीं जाता है. जबकि ए2 नाम से घी को प्रोटीन के नाम पर बेचा जा रहा है. घी में प्रोटीन तो नाम मात्र का होता है.
वह कहती हैं कि कंपनियां ये दावा कर रही हैं कि आयुर्वेद के हिसाब से ए2 घी ज़्यादा फ़ायदेमंद है. जबकि आयुर्वेद ऐसा कोई दावा नहीं करता कि तथाकथित ए2 घी खाना सेहत के लिए ज्यादा अच्छा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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