विजयादशमी का दिन केवल विजय का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह धर्म की अधर्म पर, नीति की अनीति पर, सत्य की असत्य पर और न्याय की अन्याय पर विजय का पर्व है। यह दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और संगठनात्मक प्रेरणा का स्रोत है। संघ की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन की थी, इसलिए यह दिन संघ के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
उत्सव का आध्यात्मिक महत्व
विजयादशमी का उत्सव दैवीय शक्तियों की आसुरी शक्तियों पर विजय का प्रतीक है। इस दिन से नौ दिनों तक देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने रावण को पराजित कर धर्म की स्थापना की थी, और माँ दुर्गा ने असुरों पर विजय प्राप्त की थी। यह पर्व नारी शक्ति की उपासना का भी प्रतीक है। संघ पिछले सौ वर्षों से इन गुणों के विकास के लिए कार्यरत है, ताकि समाज में कोई रावण जैसी आसुरी शक्ति न हो।
संघ की यात्रा और उद्देश्य
संघ की यात्रा के तीन मुख्य पहलू हैं: अनवरत, अखंड और निरंतरता। 1925 से 1940 तक संघ ने कार्य का बीजारोपण किया। 1940 से 1975 तक संघ का विस्तार हुआ, और 1975 से 2000 तक समाज ने संघ के कार्य में सहयोग दिया। 2000 से अब तक, संघ ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाई है। कोविड के दौरान संघ और समाज ने मिलकर कार्य किया, जो संघ के प्रति विश्वास का प्रतीक है।
पंच परिवर्तन का महत्व
पंच परिवर्तन का विचार संघ द्वारा समाज निर्माण की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य भारतीय समाज को संस्कारयुक्त, संगठित और शक्तिशाली बनाना है। इसमें सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्व के भाव का जागरण और नागरिक शिष्टाचार शामिल हैं।
समाज जागरण से राष्ट्र का उत्थान
संघ के लाखों स्वयंसेवकों द्वारा पिछले सौ वर्षों से एक निरंतर महायज्ञ चल रहा है, जिसका उद्देश्य समाज को संगठित और जागरूक बनाना है। आज की आवश्यकता है कि सज्जन शक्ति एक साथ आएं और मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें। विजयादशमी के इस पावन दिन पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम भारत को फिर से विश्वगुरु के स्थान पर प्रतिष्ठित करें।
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