अलसी एक प्रकार का तिलहन है, जिसके बीज सुनहरे रंग के और चिकने होते हैं। इसका तेल फर्नीचर के वार्निश में भी उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, अलसी वात, पित्त और कफ को संतुलित करने में सहायक होती है।
अलसी के स्वास्थ्य लाभ
अलसी मूत्रल, रक्तशोधक और सूजन कम करने वाले गुणों से भरपूर है। यह यकृत, आमाशय और आँतों की सूजन को कम करती है और बवासीर तथा पेट के विकारों में राहत देती है। इसके अलावा, यह गुर्दे की पथरी को भी दूर करने में मदद करती है।
पोषण तत्व
अलसी में विटामिन बी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, और अन्य खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है।
आधुनिक आहार में कमी
पिछले कुछ दशकों में हमारे आहार में ओमेगा-3 की मात्रा में कमी आई है, जिससे डायबिटीज और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ी हैं।
अलसी का सेवन
प्रतिदिन 30 से 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिए। इसे पीसकर आटे में मिलाकर रोटी या पराठा बनाकर खाना फायदेमंद होता है।
अलसी के अन्य लाभ
अलसी न केवल शर्करा को नियंत्रित करती है, बल्कि यह वजन कम करने में भी मदद करती है। यह हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक है और दृष्टि को भी सुधारती है।
अलसी का ऐतिहासिक महत्व
प्राचीन काल में अलसी की पूजा की जाती थी और इसे कई नामों से जाना जाता था। आयुर्वेद में इसे लगभग 500 रोगों के उपचार के लिए उपयोगी माना गया है।
अलसी का उपयोग
अलसी का तेल और बीज कई स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में सहायक होते हैं। इसका सेवन करने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है।
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