New Delhi, 30 जुलाई . भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कुछ ऐसे नायकों के नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हैं, जिन्होंने देश की आजादी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया.
क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 30 जुलाई, 1882 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ था. उनके पिता अभय चरण बोस मिदनापुर कॉलेज में प्रोफेसर थे. सत्येंद्रनाथ ने बचपन से ही देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति उत्साह को आत्मसात किया था.
सत्येंद्रनाथ बोस का क्रांतिकारी जीवन अरविंद घोष और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे प्रखर विचारकों से प्रेरित था. स्वामी विवेकानंद और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के साहित्य ने उनके मन में स्वदेशी और स्वतंत्रता की भावना को प्रबल किया.
उन्होंने स्वदेशी का प्रचार करने के साथ युवाओं को क्रांतिकारी गतिविधियों से जोड़ा. सत्येंद्रनाथ ने ‘सोनार बंगला’ नामक पत्रक भी लिखा, जो जनता में स्वतंत्रता की चेतना जागृत करने का एक प्रभावी माध्यम बना.
सत्येंद्रनाथ का नाम पहली बार पुलिस रिकॉर्ड में तब दर्ज हुआ, जब मिदनापुर शस्त्र मामले में उन्हें बिना लाइसेंस की बंदूक रखने के लिए गिरफ्तार किया गया. इस अपराध के लिए उन्हें दो महीने की सजा हुई, लेकिन यह उनके क्रांतिकारी संकल्प को और मजबूत करने वाला क्षण था.
1908 का अलीपुर बम कांड स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था. इस कांड में अरविंद घोष मुख्य संदिग्ध थे. इस दौरान नरेंद्र नाथ गोस्वामी नामक एक व्यक्ति ने क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाही देने का फैसला किया, जिससे अरविंद घोष और अन्य क्रांतिकारियों की जान को खतरा था.
सत्येंद्रनाथ बोस और उनके साथी कन्हाई लाल दत्ता ने इस गद्दारी को देश के प्रति अपराध माना. 31 अगस्त, 1908 को अलीपुर जेल अस्पताल में, जहां दोनों विचाराधीन कैदी के रूप में रखे गए थे, उन्होंने नरेंद्रनाथ गोस्वामी को गोली मारकर उसकी हत्या कर दी.
इस साहसिक कदम का उद्देश्य केवल बदला लेना नहीं था बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि गोस्वामी की गवाही को अदालत में सबूत के रूप में स्वीकार न किया जाए. इस हत्या ने अरविंद घोष और अन्य क्रांतिकारियों को कानूनी खतरे से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इस कृत्य के लिए सत्येंद्रनाथ और कनाईलाल पर मुकदमा चला. 21 अक्टूबर, 1908 को हाईकोर्ट ने दोनों को मृत्युदंड की सजा सुनाई. कनाईलाल को 10 नवंबर, 1908 को फांसी दे दी गई, जबकि सत्येंद्रनाथ का मामला सत्र न्यायाधीश के असहमति के कारण उच्च न्यायालय में गया.
21 नवंबर, 1908 को सत्येंद्रनाथ बोस को भी फांसी पर लटका दिया गया. मात्र 26 वर्ष की आयु में उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया.
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एकेएस/एबीएम
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