New Delhi, 30 जुलाई . Supreme court ने केरल क्रिकेट एसोसिएशन (केसीए) की ओर से केरल के पूर्व रणजी ट्रॉफी क्रिकेटर संतोष करुणाकरण पर लगाए गए आजीवन प्रतिबंध को रद्द कर दिया है.
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने करुणाकरण की विशेष अनुमति याचिका (SLP) को स्वीकार कर लिया. उन्होंने यह याचिका केरल हाई कोर्ट के 2021 के उन फैसलों के खिलाफ दायर की थी, जिसमें उनकी याचिका और उसके बाद की अपील को खारिज कर दिया गया था.
क्रिकेटर ने मूल रूप से 2019 में लोकपाल-सह-नैतिकता अधिकारी से संपर्क किया था, जिसमें न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति की ओर से अनुशंसित और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की ओर से अपनाए गए केरल के सभी जिला क्रिकेट संघों (डीसीए) में आदर्श उपनियमों को लागू करने का अनुरोध किया गया.
लोकपाल ने 3 अक्टूबर, 2020 को करुणाकरण की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बार-बार निर्देशों के बावजूद, उन्होंने डीसीए को मामले में पक्षकार नहीं बनाया. करुणाकरण ने इस फैसले को चुनौती देते हुए केरल उच्च न्यायालय का रुख किया और तर्क दिया कि लोकपाल की कार्यवाही बिल्कुल अपारदर्शी थी, उन्हें इन निर्देशों के बारे में कभी सूचित नहीं किया गया.
केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ और खंडपीठ, दोनों ने करुणाकरण की याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्होंने ‘गलत इरादों’ से अदालत का रुख किया था और कथित तौर पर महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया था.
उच्च न्यायालय की ओर से करुणाकरण की याचिकाओं को खारिज करने के बाद, केसीए ने अपने उपनियमों के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया.
अगस्त 2021 में, केसीए ने करुणाकरण पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया, उन्हें ब्लैकलिस्ट में डाल दिया और तिरुवनंतपुरम डीसीए के रजिस्टर्ड मेंबर के रूप में उनके अधिकारों और विशेषाधिकारों से वंचित कर दिया.
अपने फैसले में, Supreme court करुणाकरण के इस तर्क से सहमत हुआ कि लोकपाल के समक्ष कार्यवाही में पारदर्शिता का अभाव था और उन्हें संबंधित रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराए गए थे.
उल्लेखनीय है कि करुणाकरण ने लोकपाल को पत्र लिखकर मूल आवेदन में कार्यवाही के सभी अभिलेखों की एक प्रति प्राप्त करने का अनुरोध किया था, लेकिन उनके अनुरोध को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया.
इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि करुणाकरण और उनके वकील को लोकपाल से संपर्क करने में बार-बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि वर्चुअल सुनवाई ‘बिना किसी औचित्य के अक्सर बाधित’ होती थी. उसने केरल उच्च न्यायालय की ओर से करुणाकरण की याचिकाओं को खारिज करने को ‘कठोर’ करार दिया. Supreme court ने कहा कि करुणाकरण अपने मूल आवेदन में डीसीए को शामिल करने के लिए बाध्य नहीं थे.
Supreme court ने लोकपाल के आदेश के साथ-साथ केरल हाई कोर्ट के 27 जनवरी और 21 जून, 2021 के फैसलों को रद्द कर दिया. Supreme court ने करुणाकरण के उस मूल आवेदन को फिर से शुरू करने का आदेश दिया जिसमें जिला-स्तरीय क्रिकेट प्रशासन में संरचनात्मक सुधारों की मांग की गई थी.
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आरएसजी/एएस
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