New Delhi, 8 अक्टूबर . “मैं India में जहां भी रहूंगा, वही मेरा घर होगा,” यह गोपबंधु दास के शब्द थे, जिन्हें ‘उत्कलमणि’ (उत्कल का रत्न) कहा जाता है. यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कोई व्यक्ति कितने समय तक जीवित रहता है, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि वह जीवन कैसे जीते हैं. मतलब, किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा का आकलन समाज और देश में उसके योगदान के आधार पर ही किया जा सकता है. यह आश्चर्यजनक है कि पंडित गोपबंधु दास ने अपने छोटे से जीवनकाल में समाज और देश, खासकर Odisha के लिए ऐसे काम किए, जिन्हें सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता है. खासकर साहित्य, शिक्षा और पत्रकारिता के क्षेत्र में गोपबंधु दास का योगदान अविस्मरणीय है.
अपने लेखन और कार्यों के माध्यम से गोपबंधु दास ने न सिर्फ लोगों को जागरूक किया, बल्कि एक समृद्ध और जागरूक समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके समय के सामाजिक और Political माहौल ने उनकी सोच को प्रभावित किया और उन्हें Odisha की खोई हुई महानता को फिर से स्थापित करने की प्रेरणा दी. उस समय Odisha में राष्ट्रीय जागरूकता की लहर उठ रही थी, पश्चिमी शिक्षा का परिचय हो रहा था और भारतीय पुनर्जागरण का उदय हो रहा था. गोपबंधु दास उस समय अपने उपनाम ‘उत्कलमणि’ (उत्कल का रत्न) से लोकप्रिय थे.
गोपबंधु दास का जन्म 9 अक्टूबर 1877 को Odisha के पुरी जिले के सुआंडो नामक गांव में हुआ था. जन्म के बाद उनकी माता का निधन हो गया, जिससे उनके दिल में एक खालीपन रह गया. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हासिल की.
पढ़ाई के दौरान उनका संपर्क एम. रामाचंद्र दास से हुआ, जो एक सिद्धांतवादी और देशभक्त व्यक्ति थे, जिन्होंने उनमें सेवा भावना और देशभक्ति की भावना को गहरा किया. उसी बीच, भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के समय हैजा महामारी फैल गई, जिससे कई लोगों की मौत हो गई. गोपालंधु ने अपने मित्रों को संगठित किया और ‘पुरी सेवा समिति’ बनाई, जो उनके सार्वजनिक सेवा में प्रथम प्रयास थे.
ब्रह्मानंद सतपथी ने ‘गोपबंधु दास: एक बहुमुखी व्यक्तित्व’ लेख लिखा, जिसमें गोपबंधु दास के जीवन के कई पहलुओं को उजागर किया गया है. यह Government की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
जब वे रेवेनशॉ कॉलेज में छात्र थे, तब उनके पिता का भी निधन हो गया था. अपनी बड़ी व्यक्तिगत क्षति के बावजूद, उन्होंने रेवेनशॉ कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कई कविताएं लिखीं. उसी समय उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा का संकल्प लिया.
1919 में पंडित गोपबंधु दास ने ‘समाज’ समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया था. इस प्रकाशन के माध्यम से उन्होंने Odisha में स्वतंत्रता का संदेश फैलाया. उन्होंने इस समाचार पत्र के माध्यम से लोगों की समस्याओं को भी उठाया. ‘समाज’ में उनके संपादकीयों ने उड़िया साहित्य में बहुत योगदान दिया. गोपबंधु नियमित रूप से उत्कल सम्मेलनी की वार्षिक बैठक में भाग लेते थे. उसी साल (1919) में उन्हें इसका अध्यक्ष चुना गया. गोपबंधु Odisha के पहले नेता थे, जिन्होंने Odisha प्रांतीय समिति का आयोजन किया.
India Government के संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, पुरी के किसानों को संगठित करना उनके सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक था. 1921 में गोपबंधु दास ने महात्मा गांधी को Odisha आने का निमंत्रण दिया. गांधीजी की यात्रा ने क्षेत्र में असहयोग आंदोलन में नई ऊर्जा का संचार किया, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में असहयोग आंदोलन का प्रसार हुआ. 16 अक्टूबर 1921 को खंडगिरि में एक सभा आयोजित की गई, जिसमें किसानों ने भारी संख्या में भाग लिया.
इस सभा में दास ने असहयोग आंदोलन के तत्वों को विस्तार से समझाया. सभा में उठाए गए कई मांगों में से दो सबसे महत्वपूर्ण थे. पहली, राजस्व वसूलने वाले Governmentी मध्यस्थों के अधिकारों की रक्षा और दूसरी, कड़े वन नियमों में सुधार. इन कदमों ने किसानों को ब्रिटिश Government की नीतियों के खिलाफ संगठित करने में मदद की. पुरी जिले के अलावा गोपबंधु दास गंजम और अन्य जिलों में भी स्वतंत्रता संग्राम के लिए जनता को संगठित करने में सक्रिय रहे.
राजनीति में, गोपबंधु दास बिहार और उड़ीसा विधान परिषद के सदस्य रहे और उन्होंने उड़ीसा के कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर जोर दिया.
पंडित गोपबंधु दास अच्छी तरह से जानते थे कि कोई भी समाज या राष्ट्र उचित शिक्षा के बिना प्रगति नहीं कर सकता है. यही कारण है कि उन्होंने पुरी जिले के सत्यबाड़ी में मुक्तकाश विद्यालय की स्थापना की, जिसे वन विद्यालय भी कहा जाता है. शुरुआत से ही छात्रों को प्रकृति से जोड़ने का उनका दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण है. पंडित गोपबंधु ने वन विद्यालय के माध्यम से छात्रों के समग्र विकास पर जोर दिया. उनके विचार में, शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान नहीं है, बल्कि शिक्षा से छात्रों का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास भी होना चाहिए.
गोपाबंधु दास की यह समर्पित और बहुमुखी भूमिका उन्हें उड़ीसा और India के इतिहास में अमर बना देती है.
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डीसीएच/एएस
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