इस्लामाबाद, 23 अप्रैल . पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने बुधवार को पुष्टि की कि देश में रह रहे 1,00,000 से अधिक अफगान नागरिक अपने वतन चले गए हैं. अवैध अफगान नागरिकों और अफगान नागरिक कार्ड (एसीसी) धारकों की वापसी की समय सीमा 30 अप्रैल नजदीक आ रही है.
यह अफगान नागरिकों के निष्कासन का दूसरा अभियान है. 2023 में पहला चरण शुरू हुआ था. पहले चरण के तहत, सभी अवैध और गैर-दस्तावेजी अफगानों को स्वेच्छा से देश छोड़ने या अफगानिस्तान निर्वासित किया गया.
दूसरे चरण में, पाकिस्तान ने अफगान नागरिक कार्ड (एसीसी) धारकों को भी शामिल करने की घोषणा की. स्वैच्छिक प्रत्यावर्तन के लिए 31 मार्च की समय सीमा निर्धारित की गई.
वहीं बिना दस्तावेज वाले और एसीसी धारक अफगानों को तोरखम सीमा के माध्यम से देश से बाहर निकालने के लिए 30 अप्रैल की समय सीमा निर्धारित की गई.
आंतरिक मंत्रालय ने पुष्टि की, “अप्रैल के पहले तीन सप्ताह के दौरान 1,00,529 अफगान देश छोड़ चुके हैं.”
मार्च में स्वैच्छिक वापसी की समयसीमा समाप्त होने के बाद से अफगानों के काफिले प्रतिदिन तोरखम सीमा की ओर बढ़ते देखे जा रहे हैं. देश छोड़ने के लिए मजबूर कई अफगान परिवारों ने पाकिस्तानी पुलिस अधिकारियों के हाथों दुर्व्यवहार और अपमान का आरोप लगाया है.
पाकिस्तान में जन्मे 27 वर्षीय अफगान नागरिक अल्लाह रहमान ने कहा, “मैं पाकिस्तान में पैदा हुआ और कभी अफगानिस्तान नहीं गया. मुझे डर था कि पुलिस मुझे और मेरे परिवार को अपमानित कर सकती है. अब हम पूरी तरह से असहाय होकर अफगानिस्तान वापस जा रहे हैं.”
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) ने खुलासा किया कि जहां कई अफगान स्वेच्छा से पाकिस्तान छोड़ रहे हैं, वहीं हर गुजरते दिन के साथ गिरफ्तारियां और हिरासत भी बढ़ रही हैं. यूएनएचसीआर के अनुसार, वर्ष 2024 के दौरान पाकिस्तान में कम से कम 12,948 गिरफ्तारियां और हिरासत हुई हैं.
दूसरी ओर, अफगानिस्तान ने भी पाकिस्तान में अपने नागरिकों के साथ कथित दुर्व्यवहार की निंदा की, और पाकिस्तान सरकार से अफगान शरणार्थियों की ‘सम्मानजनक वापसी’ सुनिश्चित करने और उन्हें सुविधा प्रदान करने का आह्वान किया.
यह मामला अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री हसन अखुंद और पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री तथा विदेश मंत्री इशाक डार के बीच हाल ही में काबुल की एक दिवसीय यात्रा के दौरान हुई बैठक में भी उठाया गया था.
निर्वासित अफगान नागरिकों में आधे से अधिक महिलाएं और बच्चे हैं, इसलिए यूएनएचसीआर ने उनके भविष्य को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है. अफगानिस्तान एक ऐसा देश है, जहां माध्यमिक विद्यालय से आगे की शिक्षा कई लोगों के लिए वर्जित है.
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