New Delhi, 27 जुलाई . हर साल 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन केवल एक तारीख नहीं है, यह उस विषय को गंभीरता से सोचने का दिन है जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं. मानव जीवन की नींव, सभ्यता की समृद्धि और समाज का स्वास्थ्य, सब कुछ प्रकृति के संतुलन पर टिका हुआ है. विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस एक चेतावनी है, एक आह्वान है, और साथ ही एक वादा भी कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा करेंगे; न सिर्फ अपने लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी.
वर्तमान समय में हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, उसमें जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, जैव विविधता का ह्रास और प्रदूषण जैसे संकट सिर्फ वैज्ञानिक शोधपत्रों तक सीमित नहीं रह गए हैं. ये अब हमारे घरों की खिड़कियों से झांकने लगे हैं, कभी लू की मार बनकर, कभी बेमौसम बारिश, कभी सूखे, तो कभी बाढ़ के रूप में. हमने सदियों तक जिस प्रकृति को सिर्फ दोहन का स्रोत माना, वह अब हमें जवाब दे रही है. ऐसे में अब सवाल यह नहीं है कि इससे नुकसान कब होगा, सवाल यह है कि हम कब तक आंख मूंदे बैठे रहेंगे?
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का उद्देश्य हमें इस सत्य से परिचित कराना है कि अगर हम अब भी अपनी जीवनशैली नहीं बदलते हैं और प्रकृति को सिर्फ एक संसाधन मानकर उसका अंधाधुंध उपयोग करते रहे, तो आने वाला कल भयावह होगा. पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली अपनाने की आवश्यकता अब कोई वैकल्पिक सुझाव नहीं बल्कि अनिवार्यता बन चुकी है.
भारत में स्वच्छ भारत अभियान, प्रोजेक्ट टाइगर और मैंग्रोव फॉर द फ्यूचर जैसी पहलें इस बात का प्रमाण हैं कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनभागीदारी हो, तो संरक्षण सिर्फ एक आदर्श नहीं, व्यवहारिक बदलाव बन सकता है. लेकिन, इन पहलों को तब तक संपूर्ण सफलता नहीं मिल सकती, जब तक हर नागरिक, हर समुदाय, हर संस्था अपनी भूमिका नहीं निभाती.
संरक्षण अब किसी एक मंत्रालय या संगठन की जिम्मेदारी नहीं रह गई है. यह हम सबका व्यक्तिगत कर्तव्य बन गया है. अपने घर में जल और बिजली की बचत से लेकर पुनः उपयोग की आदत तक, छोटे-छोटे कदम एक बड़े बदलाव की नींव बन सकते हैं. बच्चों को प्रकृति से जोड़ना, उन्हें पेड़-पौधों और जानवरों की अहमियत सिखाना, आने वाले कल के लिए एक ऐसा निवेश हो सकता है, जिसकी हमने शायद ही कभी कल्पना की होगी.
मौजूदा समय में युवा वर्ग जितना समय सोशल मीडिया को देता है, उतनी ही लगन अगर वह पर्यावरण को दे, तो एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. महज एक पेड़ लगाना भी क्रांतिकारी कदम हो सकता है. जब हम सामूहिक रूप से कदम बढ़ाते हैं, तो क्रांति की शुरुआत होती है, वह है हरित क्रांति.
प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है. सांस लेने के लिए हवा, पीने के लिए पानी, खाने के लिए अनाज और जीवन के लिए सौंदर्य. अब समय है कुदरत को हम भी इसके बदले में वापस लौटाएं. यह काम हमें उस मां के प्रति कर्ज चुकाने की तरह करना होगा, जिसने हमें जन्म देने के साथ-साथ जीने की वजह दी. पर्यावरण संरक्षण का काम सिर्फ वैज्ञानिकों का नहीं है, यह हर उस इंसान की जिम्मेदारी है जो इस धरती पर सांस ले रहा है. हर छोटी कोशिश, चाहे वह एक प्लास्टिक बैग से परहेज करना हो या किसी पर्यावरण संगठन को समर्थन देना, इस बदलाव का हिस्सा बन सकती है.
पोस्टर लगाने या भाषण देने से आगे बढ़कर हमें कुछ करना होगा, तभी इस दिन का असली सार पूरा होगा. अगर हम सच में अपने भविष्य को सुरक्षित देखना चाहते हैं, तो आज ही वह बीज बोना होगा जो कल को हरित और सुरक्षित बना सके. आइए, इस 28 जुलाई को हम एक संकल्प लें. संकल्प प्रकृति की रक्षा का, अपनी जिम्मेदारी निभाने का और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसी दुनिया छोड़ जाने का जिसमें जीवन काफी खूबसूरत हो, जैसे हमें और हमारे पूर्वजों को कभी मिला था.
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पीएसके/एएस
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