नई दिल्ली: सिंगापुर लगातार सात सालों से भारत में सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक (एफडीआई) बना हुआ है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में सिंगापुर से लगभग 15 अरब डॉलर का निवेश आया है। यह जानकारी 1 जून को जारी आंकड़ों से मिली है। पिछले वित्तीय वर्ष में भारत में कुल विदेशी निवेश 13 फीसदी बढ़कर 50 अरब डॉलर तक पहुंच गया। कुल एफडीआई 14 फीसदी बढ़कर 81.04 अरब डॉलर हो गया। इसमें इक्विटी इनफ्लो, रीइंवेस्टेड अर्निंग्स और अन्य तरह की पूंजी शामिल है। यह पिछले तीन सालों में सबसे ज्यादा है। भारत के विकास के लिए विदेशी निवेश बहुत जरूरी है।
भारत में विदेशी निवेश का महत्व बहुत अधिक है। यह देश के बुनियादी ढांचे को सुधारने में मदद करता है। जैसे कि बंदरगाहों, हवाई अड्डों और राजमार्गों का विकास होता है। इससे आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है। साथ ही, यह देश के भुगतान संतुलन को बेहतर बनाने और रुपये की कीमत को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बढ़ाने में भी मदद करता है।
7 साल से भारत पर कायम है भरोसा
वित्तीय वर्ष 2024-25 में सिंगापुर से आने वाला एफडीआई बढ़कर 14.94 अरब डॉलर हो गया। यह 2023-24 में 11.77 अरब डॉलर था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सिंगापुर ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए कुल एफडीआई इनफ्लो का लगभग 19 फीसदी योगदान दिया। वित्तीय वर्ष 2018-19 से सिंगापुर लगातार भारत में विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। इसका मतलब है कि सबसे ज्यादा पैसा सिंगापुर से ही भारत में आ रहा है।
2017-18 में मॉरीशस भारत के लिए एफडीआई का सबसे बड़ा स्रोत था। उस दौरान मॉरीशस से 8.34 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया था। इसका मतलब है कि उस साल मॉरीशस ने भारत में सबसे ज्यादा पैसा लगाया था।
मॉरीशस के बाद अमेरिका ने 5.45 अरब डॉलर का एफडीआई योगदान दिया। नीदरलैंड ने 4.62 अरब डॉलर का कॉन्ट्रिब्यूशन रहा। यूएई, जापान, साइप्रस, यूके, जर्मनी और केमैन आइलैंड्स ने भी 3.12 अरब डॉलर, 2.47 अरब डॉलर, 1.2 अरब डॉलर, 79.5 करोड़ डॉलर, 46.9 करोड़ डॉलर और 37.1 करोड़ डॉलर का योगदान दिया। इन सभी देशों ने भी भारत में अच्छा निवेश किया है।
एफडीआई इनफ्लो में किन देशों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी?
दोहरे कराधान बचाव समझौते का असर
विशेषज्ञों का मानना है कि सिंगापुर एक बड़ा फाइनेंशियल हब है। भारत के साथ उसके अच्छे संबंध हैं। यह वैश्विक निजी इक्विटी और उद्यम पूंजी के लिए एक ब्रिज के रूप में काम करता है। इसलिए सिंगापुर से इतना निवेश आ रहा है।
डेलॉइट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि बाजार में उतार-चढ़ाव और व्यापार में अनिश्चितता के बावजूद भारत ने अच्छा निवेश आकर्षित किया है। यह निवेश स्थिर और लंबे समय तक चलने वाला है।
अर्थशास्त्री ने यह भी बताया कि भारत और सिंगापुर के बीच दोहरे कराधान से बचाव समझौता है। इससे सिंगापुर की कंपनियों को भारत में निवेश करने में मदद मिलती है। वे भारत में कमाए गए पैसे पर कम टैक्स देती हैं।
इंडस लॉ के पार्टनर लोकेश शाह ने कहा कि भारत और सिंगापुर के बीच कर संधि एफडीआई को बढ़ाने में महत्वपूर्ण है। लोकेश शाह ने कहा, 'भारत के एफडीआई में सिंगापुर की लगातार प्रमुखता अब वास्तविक व्यावसायिक और नियामक लाभों पर निर्भर करती है। इसके साथ ही सिंगापुर के परिष्कृत वित्तीय बाजार, क्षेत्रीय केंद्र के रूप में इसकी स्थिति और राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता भी महत्वपूर्ण है।'
भारत में विदेशी निवेश का महत्व बहुत अधिक है। यह देश के बुनियादी ढांचे को सुधारने में मदद करता है। जैसे कि बंदरगाहों, हवाई अड्डों और राजमार्गों का विकास होता है। इससे आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है। साथ ही, यह देश के भुगतान संतुलन को बेहतर बनाने और रुपये की कीमत को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बढ़ाने में भी मदद करता है।
7 साल से भारत पर कायम है भरोसा
वित्तीय वर्ष 2024-25 में सिंगापुर से आने वाला एफडीआई बढ़कर 14.94 अरब डॉलर हो गया। यह 2023-24 में 11.77 अरब डॉलर था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सिंगापुर ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए कुल एफडीआई इनफ्लो का लगभग 19 फीसदी योगदान दिया। वित्तीय वर्ष 2018-19 से सिंगापुर लगातार भारत में विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। इसका मतलब है कि सबसे ज्यादा पैसा सिंगापुर से ही भारत में आ रहा है।
2017-18 में मॉरीशस भारत के लिए एफडीआई का सबसे बड़ा स्रोत था। उस दौरान मॉरीशस से 8.34 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया था। इसका मतलब है कि उस साल मॉरीशस ने भारत में सबसे ज्यादा पैसा लगाया था।
मॉरीशस के बाद अमेरिका ने 5.45 अरब डॉलर का एफडीआई योगदान दिया। नीदरलैंड ने 4.62 अरब डॉलर का कॉन्ट्रिब्यूशन रहा। यूएई, जापान, साइप्रस, यूके, जर्मनी और केमैन आइलैंड्स ने भी 3.12 अरब डॉलर, 2.47 अरब डॉलर, 1.2 अरब डॉलर, 79.5 करोड़ डॉलर, 46.9 करोड़ डॉलर और 37.1 करोड़ डॉलर का योगदान दिया। इन सभी देशों ने भी भारत में अच्छा निवेश किया है।
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डेलॉइट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि बाजार में उतार-चढ़ाव और व्यापार में अनिश्चितता के बावजूद भारत ने अच्छा निवेश आकर्षित किया है। यह निवेश स्थिर और लंबे समय तक चलने वाला है।
अर्थशास्त्री ने यह भी बताया कि भारत और सिंगापुर के बीच दोहरे कराधान से बचाव समझौता है। इससे सिंगापुर की कंपनियों को भारत में निवेश करने में मदद मिलती है। वे भारत में कमाए गए पैसे पर कम टैक्स देती हैं।
इंडस लॉ के पार्टनर लोकेश शाह ने कहा कि भारत और सिंगापुर के बीच कर संधि एफडीआई को बढ़ाने में महत्वपूर्ण है। लोकेश शाह ने कहा, 'भारत के एफडीआई में सिंगापुर की लगातार प्रमुखता अब वास्तविक व्यावसायिक और नियामक लाभों पर निर्भर करती है। इसके साथ ही सिंगापुर के परिष्कृत वित्तीय बाजार, क्षेत्रीय केंद्र के रूप में इसकी स्थिति और राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता भी महत्वपूर्ण है।'
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