आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में मची भगदड़ से हुई मौतों के लिए व्यवस्था की खामी जिम्मेदार है। ऊपर से घटना के बाद जिस तरह से बयान दिए जा रहे हैं, वह पीड़ितों के जले पर नमक छिड़कने जैसा है।
जानकारी क्यों नहीं । यह मंदिर कुछ महीने पहले ही खोला गया था और राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि जिले के अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी नहीं थी। हालांकि इससे यह जवाबदेही खत्म नहीं हो जाती कि एक धार्मिक स्थल पर क्षमता से कई गुना ज्यादा लोग जुटते चले गए, और फिर भी स्थानीय पुलिस-प्रशासन को भनक कैसे नहीं लगी।
लापरवाही पड़ी भारी । सरकार और मंदिर प्रबंधन की बातों से लग रहा है कि दोनों पक्ष घटना से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मंदिर का निर्माण ओडिशा के जिस शख्स हरि मुकुंद पांडा ने कराया है, उनका कहना है कि सीढ़ियों की रेलिंग टूटने से हादसा हुआ। लेकिन, यही वजह तो काफी नहीं। भगदड़ मचने के बाद श्रद्धालुओं को बाहर जाने का रास्ता नहीं मिल पाया, वह व्यवस्थापकों की लापरवाही का नतीजा है।
पीड़ितों का मजाक । मंदिर में आने-जाने का एक ही रास्ता था और जब भीड़ अनुमान से अधिक बढ़ती चली गई, तब भी पुलिस-प्रशासन को सूचित नहीं किया गया। इस पर पांडा का कहना कि इस घटना के लिए कोई जिम्मेदार नहीं, यह एक्ट ऑफ गॉड है - बेहद शर्मनाक है। यह उन लोगों की पीड़ा का मजाक उड़ाने जैसा है, जिन्होंने अपनों को खोया।
कई हादसे । चिंता की बात यह है कि पिछले हादसों से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है। केवल आंध्र में ही इस साल यह तीसरी बड़ी दुर्घटना है। जनवरी में तिरुपति और अप्रैल में विशाखापत्तनम के सिम्हाचलम में भगदड़ से कई मौतें हुई थीं। पूरे देश में इस साल अभी तक भगदड़ की विभिन्न घटनाओं में 114 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
कब सीखेंगे सबक । तमिलनाडु के करूर में तमिल सिनेमा के सुपरस्टार थलपति विजय की रैली में हुआ हादसा हो या फिर श्रीकाकुलम की घटना - कुछ गलतियां बार-बार दोहराई जा रही हैं। हादसों के बाद सबक लेने के बजाय जिम्मेदार लोग और संस्थाएं बचने का रास्ता तलाशने लगते हैं। सरकारों को समझना होगा कि क्राउड मैनेजमेंट भारत जैसे देश की जरूरत है। मुआवजे की घोषणा करके मामले को हल्का किया जा सकता है, लेकिन जवाबदेही तय हो और लापरवाही पर सजा मिले।
जानकारी क्यों नहीं । यह मंदिर कुछ महीने पहले ही खोला गया था और राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि जिले के अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी नहीं थी। हालांकि इससे यह जवाबदेही खत्म नहीं हो जाती कि एक धार्मिक स्थल पर क्षमता से कई गुना ज्यादा लोग जुटते चले गए, और फिर भी स्थानीय पुलिस-प्रशासन को भनक कैसे नहीं लगी।
लापरवाही पड़ी भारी । सरकार और मंदिर प्रबंधन की बातों से लग रहा है कि दोनों पक्ष घटना से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मंदिर का निर्माण ओडिशा के जिस शख्स हरि मुकुंद पांडा ने कराया है, उनका कहना है कि सीढ़ियों की रेलिंग टूटने से हादसा हुआ। लेकिन, यही वजह तो काफी नहीं। भगदड़ मचने के बाद श्रद्धालुओं को बाहर जाने का रास्ता नहीं मिल पाया, वह व्यवस्थापकों की लापरवाही का नतीजा है।
पीड़ितों का मजाक । मंदिर में आने-जाने का एक ही रास्ता था और जब भीड़ अनुमान से अधिक बढ़ती चली गई, तब भी पुलिस-प्रशासन को सूचित नहीं किया गया। इस पर पांडा का कहना कि इस घटना के लिए कोई जिम्मेदार नहीं, यह एक्ट ऑफ गॉड है - बेहद शर्मनाक है। यह उन लोगों की पीड़ा का मजाक उड़ाने जैसा है, जिन्होंने अपनों को खोया।
कई हादसे । चिंता की बात यह है कि पिछले हादसों से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है। केवल आंध्र में ही इस साल यह तीसरी बड़ी दुर्घटना है। जनवरी में तिरुपति और अप्रैल में विशाखापत्तनम के सिम्हाचलम में भगदड़ से कई मौतें हुई थीं। पूरे देश में इस साल अभी तक भगदड़ की विभिन्न घटनाओं में 114 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
कब सीखेंगे सबक । तमिलनाडु के करूर में तमिल सिनेमा के सुपरस्टार थलपति विजय की रैली में हुआ हादसा हो या फिर श्रीकाकुलम की घटना - कुछ गलतियां बार-बार दोहराई जा रही हैं। हादसों के बाद सबक लेने के बजाय जिम्मेदार लोग और संस्थाएं बचने का रास्ता तलाशने लगते हैं। सरकारों को समझना होगा कि क्राउड मैनेजमेंट भारत जैसे देश की जरूरत है। मुआवजे की घोषणा करके मामले को हल्का किया जा सकता है, लेकिन जवाबदेही तय हो और लापरवाही पर सजा मिले।
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