Sweden Visa For Indians: अमेरिका में H-1B वीजा की फीस बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर दी गई है। पहले जो बिना 2 से 5 हजार डॉलर में मिल जाता था। अब उसके लिए लाखों रुपये रकम खर्च करनी पड़ेगी। ऐसे में अमेरिकी कंपनियों के लिए विदेशी वर्कर्स को हायर करना महंगा हो गया है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन विदेशी स्टूडेंट्स को हुआ है, जो डिग्री पूरी कर अमेरिका में H-1B वीजा पर जॉब करना चाहते थे। विदेशी वर्कर्स भी नए नियम से परेशान हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वीजा फीस बढ़ाने की वजह से भारतीय छात्रों-वर्कर्स के लिए टेक सेक्टर में जॉब पाना मुश्किल हो गया है।
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H-1B वीजा पाने वाले 70 फीसदी लोग भारत से रहे हैं। आईटी सेक्टर ही नहीं, बल्कि हेल्थकेयर और फाइनेंस में भी भारतीय छात्र-वर्कर्स H-1B वीजा के जरिए ही जॉब पाते रहे हैं। हालांकि, अब भारतीय स्टूडेंट्स और वर्कर्स ऐसे देशों की तलाश कर रहे हैं, जहां उन्हें अमेरिका के H-1B वीजा से ज्यादा अच्छी डील मिले। ज्यादातर यूरोप के देशों में भारतीयों पढ़ाई के बाद वर्क वीजा पाने का मौका भी मिल रहा है, क्योंकि यहां पर वीजा पॉलिसी आसान है। ऐसा ही एक देश स्वीडन है, जहां भारतीयों को एक अच्छा वर्क वीजा मिल सकता है, जिन्हें पाना भी आसान है।
स्वीडन में कैसे वीजा मिल रहे?
स्वीडन में जॉब सीकर या कहें स्टार्टअप वीजा दिया जाता है। इस वीजा के जरिए विदेश से पढ़े हुए स्टूडेंट्स 3 से 9 महीने तक देश में रुक सकते हैं। इस पीरियड के दौरान वे नौकरी ढूंढ सकते हैं या फिर खुद का बिजनेस शुरू कर सकते हैं। H-1B की तरह इसमें किसी तरह की स्पांसरशिप की भी जरूरत नहीं होती है। ये वीजा सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया जाता है, जिनके पास मास्टर्स डिग्री, प्रोफेशनल डिग्री है या फिर वे पीएचडी होल्डर हैं। ये वीजा पाने के लिए स्टूडेंट्स को स्वीडिश रेजिडेंस परमिट के लिए अप्लाई करना पड़ता है।
स्वीडिश रेजिडेंस परमिट की शर्तें
जॉब सीकर वीजा का फायदा
इस वीजा का सबसे बड़ा फायदा ये है कि वर्कर्स किसी भी इंडस्ट्री में जॉब ढूंढ सकते हैं। उनके पास बिजनेस शुरू करने का भी ऑप्शन है। इसी तरह से वीजा पाने के लिए लाखों रुपये भी खर्च करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ पर्याप्त सेविंग होने से काम चल जाएगा। यूरोप में जॉब कर वर्क एक्सपीरियंस हासिल करने का भी मौका मिलता है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि वर्क परमिट और रेजिडेंस परमिट का चांस भी खुला रहता है।
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H-1B वीजा पाने वाले 70 फीसदी लोग भारत से रहे हैं। आईटी सेक्टर ही नहीं, बल्कि हेल्थकेयर और फाइनेंस में भी भारतीय छात्र-वर्कर्स H-1B वीजा के जरिए ही जॉब पाते रहे हैं। हालांकि, अब भारतीय स्टूडेंट्स और वर्कर्स ऐसे देशों की तलाश कर रहे हैं, जहां उन्हें अमेरिका के H-1B वीजा से ज्यादा अच्छी डील मिले। ज्यादातर यूरोप के देशों में भारतीयों पढ़ाई के बाद वर्क वीजा पाने का मौका भी मिल रहा है, क्योंकि यहां पर वीजा पॉलिसी आसान है। ऐसा ही एक देश स्वीडन है, जहां भारतीयों को एक अच्छा वर्क वीजा मिल सकता है, जिन्हें पाना भी आसान है।
स्वीडन में कैसे वीजा मिल रहे?
स्वीडन में जॉब सीकर या कहें स्टार्टअप वीजा दिया जाता है। इस वीजा के जरिए विदेश से पढ़े हुए स्टूडेंट्स 3 से 9 महीने तक देश में रुक सकते हैं। इस पीरियड के दौरान वे नौकरी ढूंढ सकते हैं या फिर खुद का बिजनेस शुरू कर सकते हैं। H-1B की तरह इसमें किसी तरह की स्पांसरशिप की भी जरूरत नहीं होती है। ये वीजा सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया जाता है, जिनके पास मास्टर्स डिग्री, प्रोफेशनल डिग्री है या फिर वे पीएचडी होल्डर हैं। ये वीजा पाने के लिए स्टूडेंट्स को स्वीडिश रेजिडेंस परमिट के लिए अप्लाई करना पड़ता है।
स्वीडिश रेजिडेंस परमिट की शर्तें
- पासपोर्ट: आवेदक के पास वैलिड पासपोर्ट होना चाहिए।
- एजुकेशन: आवेदक का मास्टर डिग्री या उससे ऊपर की पढ़ाई करना अनिवार्य है।
- फाइनेंशियल सबूत: आवेदक को साबित करना होगा कि उसके पास रहने के लिए 1.23 लाख रुपये महीने के बराबर पैसे हैं।
- हेल्थ इंश्योरेंस: आवेदक के पास हेल्थ इंश्योरेंस भी होना चाहिए, जिसमें हर तरह की बीमारियों का कवर हो।
- लोकेशन: आवेदक को रेजिडेंस परमिट के लिए देश के बाहर से आवेदन करना होगा।
- डॉक्यूमेंट्स: सभी डॉक्यूमेंट्स अंग्रेजी और स्वीडिश में ट्रांसलेट होने चाहिए।
जॉब सीकर वीजा का फायदा
इस वीजा का सबसे बड़ा फायदा ये है कि वर्कर्स किसी भी इंडस्ट्री में जॉब ढूंढ सकते हैं। उनके पास बिजनेस शुरू करने का भी ऑप्शन है। इसी तरह से वीजा पाने के लिए लाखों रुपये भी खर्च करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ पर्याप्त सेविंग होने से काम चल जाएगा। यूरोप में जॉब कर वर्क एक्सपीरियंस हासिल करने का भी मौका मिलता है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि वर्क परमिट और रेजिडेंस परमिट का चांस भी खुला रहता है।
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