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भारत से तुर्की किस बात की दुश्मनी निकाल रहा है...एर्दोगन को क्या है टीस, पाकिस्तान का सपोर्ट किसलिए?

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नई दिल्ली: 2016-17 की बात है, जब तुर्की में एक विद्रोह हुआ। तुर्की ने इसके लिए अमेरिका स्थित तुर्की के धार्मिक नेता फेतुल्लाह गुलान के संगठन को जिम्मेदार बताया था। तुर्की ने तब आरोप लगाया था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA उनका इस्तेमाल कर तुर्की में तख्तापलट करना चाहती है। गुलान मूवमेंट भारत में भी सक्रिय रहा है। उस वक्त तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने भारत से उम्मीद की थी कि वो अपने यहां गुलान मूवमेंट के जो भी स्कूल या दफ्तर हैं, उन्हें बंद करवा दे। माना जाता है कि उस वक्त भारत ने तुर्की की अपील अनसुनी कर दी। इसके बाद से ही राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन लगातार कश्मीर का मुद्दा उठाने लगे। हालांकि, इस दुश्मनी की जड़ें अतीत में कहीं बेहद गहरे तक धंसी हुई हैं। हाल ही में पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में ऑपरेशन सिंदूर चलाया। इसके बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के प्रति हमदर्दी जताई है। इस बीच, सीजफायर के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच DGMO लेवल की बात होनी है। जानते हैं तुर्की से दुश्मनी की वो कहानी। दिल्ली सल्तनत के 4 वंश मूल रूप से तुर्क थेआज से करीब 800 साल पहले जब हिंदुस्तान में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। यह सल्तनत काल 1206 से 1526 तक रहा। इसमें पहले के चार वंश गुलाम वंश (या मामलुक वंश), खिलजी वंश, तुगलक वंश और सैयद वंश मूल रूप से तुर्क थे। कुतुबुद्दीन ऐबक जो दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, एक तुर्क गुलाम था। ऐबक ने मोहम्मद गोरी की हत्या के बाद दिल्ली की सत्ता संभाली। वहीं, गुलाम वंश का प्रमुख शासक इल्तुतमिश भी एक तुर्क था और दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति था। हालांकि, खिलजी वंश को स्थापित करने वाला अलाउद्दीन खिलजी भी तुर्क ही था। उसने तो तुर्कियों के अलावा अन्य जातीय समूहों को अपनी सेना और शासन में शामिल किया। इसी तरह तुगलक वंश के सुल्तानों की सेना और शासन में भी तुर्क महत्वपूर्ण पदों पर थे। बाबर की तुजुके बाबरी भी मूल रूप से तुर्की में अब जरा इतिहास की ओर चलते हैं। दिल्ली के सुल्तानों और शुरुआती मुगलों के शासनकाल के दौरान भारतीय राजनीति पर तुर्की भाषा का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। तुर्की के कई शब्दों का इस्तेमाल आमतौर पर हिंदी, उर्दू और अन्य भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं में भी किया जाता है। मुगल सम्राट बाबर तुर्क-उजबेक भाषा का इस्तेमाल करने वाले एक सफल लेखक और कवि थे। उन्हें गद्य और पद्य दोनों में एक विशेष शैली के आविष्कारक के रूप में भी जाना जाता है। रामपुर की रजा लाइब्रेरी में 50 ऐसी दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों का संग्रह मौजूद है, जो तुर्की भाषा में हैं। शीत युद्ध के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्षता को अपनायाभारत और तुर्की के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना 1948 में हुई। मगर, जब अमेरिका और रूस शीतयुद्ध में उलझे तो तुर्की अमेरिका के समर्थन में उतर आया। वहीं, भारत-रूस की गहरी दोस्ती थी, मगर भारत ने गुट निरपेक्षता को अपनाया। इसके बाद से तुर्की पाकिस्तान के करीब आता गया। क्योंकि पाकिस्तान भी अमेरिका का परंपरागत दोस्त बनता गया। बाल्कन युद्धों के दौरान तुर्की गए थे डॉ. एमए अंसारीहिंदी और तुर्की भाषाओं में 9,000 से भी अधिक शब्द समान हैं। 1912 में बाल्कन युद्धों के दौरान मशहूर भारतीय स्वतंत्रता सेनानी डॉ. एमए अंसारी के नेतृत्व में तुर्की के लिए चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई गई थी। भारत ने 1920 के दशक में तुर्की के स्वतंत्रता संग्राम और तुर्की गणराज्य के गठन में भी सहयोग दिया था। इसके अलावा प्रथम विश्व युद्ध के अंत में तुर्की पर हुए अन्याय के खिलाफ महात्मा गांधी ने भी उनका साथ दिया था। 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की घोषणा के ठीक बाद तुर्की ने भारत को मान्यता दी और दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए। गाजी सैयद सालार मसूद से शुरू हुई दुश्मनीऐसा माना जाता है कि जो तुर्क सैनिक बनकर भारत आए थे, उन्होंने 11वीं सदी में एक और आक्रमणकारी गाजी सैयद सालार मसूद का साथ दिया था। महमूद गजनवी के एक सेनापति सालार मसूद इस्लाम को फैलाने के लिए भारत आया। उसने सिंध पर आक्रमण किया और फिर मुल्तान पर जीत हासिल की। मेरठ और कन्नौज से आगे बढ़ने के बाद सैयद सालार मसूद जब आगे बढ़ा तो उसे उत्तर प्रदेश के बहराइच में एक बड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। जब बहराइच आकर सैयद सालार को गंवानी पड़ी जानबहराइच के राजा सुहेलदेव ने 1034 में गजनवी सेनापति सैयद सालार मसूद गाजी को हराया और मार डाला। इस कहानी का जिक्र 17वीं शताब्दी के फारसी भाषा की किताब 'मिरात-ए-मसूदी' में किया गया है। मुगल सम्राट जहांगीर (1605-1627) के शासनकाल के दौरान अब्दुर्रहमान चिश्ती ने यह किताब लिखी थी। बाद में मसूद को बहराइच में दफनाया गया था और 1035 में वहां उसकी याद में एक दरगाह बनाई गई थी। इसकी सेना में बड़े पैमाने पर तुर्की सैनिक थे, जो भारत में इस्लाम का शासन कायम करने के लिए आए थे। हजारों हिंदुओं के कत्ल के लिए मिली गाजी की उपाधि19वीं शताब्दी में ब्रिटिश प्रशासक मसूद के प्रति हिंदू लोगों की श्रद्धा से हैरान थे। अवध में ब्रिटिश रेजिडेंट विलियम हेनरी स्लीमैन ने यह देखकर टिप्पणी की थी-यह कहना अजीब है कि मुसलमान के साथ-साथ हिंदू भी इस दरगाह पर चढ़ावा चढ़ाते हैं और इस सैन्य गुंडे के पक्ष में प्रार्थना करते हैं। इसकी इकलौती काबिलियत यही है कि इसने अपने इलाके पर अनियंत्रित और अकारण आक्रमण में बड़ी संख्या में हिंदुओं को मार डाला था। हजारों हिंदुओं के कत्ल के लिए ही सालार मसूद को गाजी की उपाधि मिली हुई थी। तुर्की मुस्लिम देशों का नेता बनना चाहता हैदरअसल भारत से रिश्ते ना बनते देख तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने अपना ध्यान अब मुस्लिम देशों का नेता बनने पर लगा दिया है। यही वजह है कि कभी वो कतर की घेराबंदी पर सऊदी अरब को धमकाता है, तो कभी गाजा पट्टी की घेराबंदी के दौरान वहां के फलस्तीनी लोगों की मदद के लिए जहाज से सहायता भेजता है। कभी वो हाविया सोफिया को मस्जिद बनाकर अपने आपको इस्लामी ताकत बनाने की कोशिश कर रहा है। कभी मुसलमानों के मानवाधिकारों के कथित दमन वाले मुद्दों को जोर-शोर से उठाता है। भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल करने पर विरोधदोनों देशों के बीच विवाद की एक बड़ी वजह व्यापार असंतुलन की भी है, जो भारत के पक्ष में था। यानी भारत तुर्की को ज्यादा सामान भेजता था, जबकि खुद तुर्की से कम वस्तुएं मंगवाता था। तुर्की चाहता है कि इसे दुरूस्त किया जाए और भारत अपना आयात बढ़ाए। साथ ही भारत मध्य पूर्व में तुर्की के साथ मिलकर प्रोजेक्टों पर काम करे। तुर्की भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल करने के कुछ विरोधियों में से एक था। थोरियम से बिजली बनाने की तकनीक चाहता है तुर्कीतुर्की के पास अपना तेल-गैस नहीं है। इस वजह से वो न्यूक्लियर पावर या परमाणु बिजली बनाने की तैयारी करना चाहता था, क्योंकि उनके यहां उसी तरह से थोरियम मौजूद है जिस तरह से भारत में केरल में पाया जाता है। तुर्की चाहता था कि भारत उसे थोरियम से बिजली बनाने की तकनीक दे, मगर भारत ने इससे इनकार कर दिया। रेचेप तैय्यप एर्दोगन खुद दो बार 2017 और 2018 में दिल्ली आए, मगर बात नहीं बनने पर नाराज होकर चले गए थे। उन्होंने यह मान लिया कि भारत के साथ उम्मीद रखना बेकार है। इजरायल, सऊदी के साथ नजदीकी बढ़ती गईभारत की नजदीकी इजरायल, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका जैसे देशों के साथ बढ़ती चली गई, वहीं तुर्की और दूर होता चला गया। तुर्की पाकिस्तान के सपोर्ट में ज्यादा रहता है। तुर्की से रिश्ते बिगड़ने की एक बड़ी वजह भारत की बदलती नीति है जिसे तुर्की स्वीकार नहीं कर पा रहा है। वह भारत की उभरती ताकत को पचा नहीं पा रहा है। यही वजह है कि वह जब-तब कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का सपोर्ट करता रहता है।
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