नई दिल्ली: शाम के करीब 7.30 बज रहे थे। दिल्ली के डॉक्टर (Child specialist) प्रदीप सिंघल अपने केबिन में बीमार बच्चों का चेकअप कर रहे थे। तभी एक महिला अपने 7 साल के बच्चे को लेकर डॉ. सिंघल के पास पहुंची। महिला ने बताया कि उनका बच्चा बात-बात पर आक्रामक हो जाता है। परिवार के लोगों पर सामान फेंकने लगता है। जो भी सामने आता है, उसे धक्का दे देता है। बच्चे के इस चिड़चिड़ेपन से दोनों (पति-पत्नी) परेशान हो गए हैं। रिश्तेदारों ने उनके घर पर आना तक बंद कर दिया है।
डॉ. सिंघल ने पहले दवाइयों के जरिए बच्चे के व्यवहार को ठीक करने की कोशिश की, लेकिन एक महीने तक कोई असर समझ नहीं आया। स्वभाव से धार्मिक डॉ. सिंघल ने मां को दवाई जारी रखने के साथ बच्चे को रोजाना 10 मिनट रामचरित मानस का पाठ अर्थ सहित सुनाने की सलाह दी। डॉ. सिंघल के मुताबिक लगातार दो महीने तक ऐसा करने के बाद उस आक्रामक बच्चे का स्वभाव काफी हद तक शांत हो गया। ये घटना साल 2017 की है। लेकिन इस घटना ने डॉक्टर सिंघल के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। अपने करियर के पीक पर डॉ. सिंघल ने डॉक्टरी का पेशा छोड़कर रामचरित मानस का प्रचार-प्रसार करने का फैसला ले लिया।
6 साल से सिर्फ रामचरित मानस का प्रचारआठ साल पहले अचानक डॉक्टरी छोड़ने वाले डॉ. प्रदीप कुमार सिंघल ने एमबीबीएस और एमडी करने के बाद दिल्ली-NCR के एम्स, अपोलो और लेडी हार्डिंग जैसे प्रसिद्ध अस्पतालों में सेवाएं दीं। लेकिन पिछले 6 साल से वो अब सिर्फ रामचरित मानस का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। डॉ. सिंघल इस काम के लिए देशभर के स्कूल-कॉलेजों में जाकर छात्रों को रामचरितमानस पढ़ने के फायदे बताते हैं।
पत्नी खुद डॉक्टर, समझाना था टेढ़ी खीरडॉ. सिंघल बताते हैं कि ये करना उनके लिए आसान नहीं था। क्योंकि जब उन्होंने डॉक्टरी छोड़ने का फैसला किया तब वो करियर के पीक पर थे। घर में भी विरोध के स्वर उठे, लेकिन उन्होंने परिवार को समझा दिया कि उनका फैसला अटल है। डॉ. सिंघल बताते हैं कि उनकी पत्नी खुद डॉक्टर हैं, इसलिए उन्हें ये समझा पाना काफी मुश्किल था कि वह इतना बढ़िया करियर आखिर क्यों छोड़ना चाहते हैं? जब वह डॉक्टरी छोड़ने का मन बना चुके थे तो उनके दोस्तों ने भी उनका काफी मजाक उड़ाया। दोस्त सवाल पूछते थे कि आप तो अपोलो जैसे बड़े अस्पताल में हो, जहां एक मरीज की फीस 2 हजार रुपये होती है, फिर क्यों... लेकिन मैंने अपना मन बना लिया था।
दोहे-चौपाई पढ़ने वाले बच्चों की बढ़ी क्रिएटिविटी!डॉ. सिंघल बताते हैं कि वह चाइल्ड स्पेशलिस्ट हैं। जो माताएं बच्चों को लेकर उनके पास चेकअप कराने आती थीं, वह अक्सर उन्हें अमेरिका और ब्रिटेन भेजने की बात करती थीं। लेकिन ज्यादातर बच्चों में संस्कार का अता-पता नहीं होता था। ये देखकर उन्हें काफी दुख होता। उन्होंने कई माताओं को अपने बच्चों को रामचरित मानस के दोहे-चौपाई सुनाने की सलाह दी और उनमें से कुछ ने बाद में दावा किया कि ऐसा करने से उनके बच्चे के आईक्यू में सुधार हुआ है। बच्चे के अंदर क्रिएटिविटी भी बढ़ी है। ऐसे मामलों से भी उनकी इच्छाशक्ति और मजबूत हुई।
15 हजार पुजारियों को जोड़कर कर रहे ये काम मानस के प्रचार-प्रसार के अलावा डॉ. सिंघल देशभर के पुजारियों की भलाई के लिए भी काम करते हैं। डॉ. सिंघल बताते हैं कि वर्तमान में पूजा-पाठ कराने वाले 80 फीसदी पुजारियों के पास आचार्य या शास्त्री की डिग्री नहीं है। ऐसे में वह पुजारियों के प्रशिक्षण के लिए ट्रेनिंग कैंप लगवाते हैं। 10 से 12 हफ्तों का ये ट्रेनिंग कैंप मंदिर में लगाया जाता है और इसके बाद ट्रेनिंग पूरी करने वाले वाले पुजारियों की परीक्षा दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय में होती है। ट्रेनिंग में पुजारियों को ऐसे दोहे और चौपाई कंठस्थ कराई जाती है, जिससे परिवारों को संस्कार का संदेश मिलता है। पुजारी परिवार में जाने पर बच्चों से पूछते हैं कि क्या वह माता-पिता के पैर छूते हैं अगर बच्चे नहीं कहते हैं तो उन्हें मानस के दोहे-चौपाइयों का उदाहरण देकर बड़ों के सम्मान की सीख दी जाती है। डॉ. सिंघल बताते हैं कि उनकी संस्था संस्कृति संज्ञान से करीब 15000 पुजारी जुड़े हुए हैं। प्रशिक्षण लेने वाले पुजारियों की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई है। प्रशिक्षित पुजारियों को यजमान से दक्षिणा भी पहले के मुकाबले ज्यादा मिलने लगी है।
डॉ. सिंघल ने पहले दवाइयों के जरिए बच्चे के व्यवहार को ठीक करने की कोशिश की, लेकिन एक महीने तक कोई असर समझ नहीं आया। स्वभाव से धार्मिक डॉ. सिंघल ने मां को दवाई जारी रखने के साथ बच्चे को रोजाना 10 मिनट रामचरित मानस का पाठ अर्थ सहित सुनाने की सलाह दी। डॉ. सिंघल के मुताबिक लगातार दो महीने तक ऐसा करने के बाद उस आक्रामक बच्चे का स्वभाव काफी हद तक शांत हो गया। ये घटना साल 2017 की है। लेकिन इस घटना ने डॉक्टर सिंघल के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। अपने करियर के पीक पर डॉ. सिंघल ने डॉक्टरी का पेशा छोड़कर रामचरित मानस का प्रचार-प्रसार करने का फैसला ले लिया।
6 साल से सिर्फ रामचरित मानस का प्रचारआठ साल पहले अचानक डॉक्टरी छोड़ने वाले डॉ. प्रदीप कुमार सिंघल ने एमबीबीएस और एमडी करने के बाद दिल्ली-NCR के एम्स, अपोलो और लेडी हार्डिंग जैसे प्रसिद्ध अस्पतालों में सेवाएं दीं। लेकिन पिछले 6 साल से वो अब सिर्फ रामचरित मानस का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। डॉ. सिंघल इस काम के लिए देशभर के स्कूल-कॉलेजों में जाकर छात्रों को रामचरितमानस पढ़ने के फायदे बताते हैं।
पत्नी खुद डॉक्टर, समझाना था टेढ़ी खीरडॉ. सिंघल बताते हैं कि ये करना उनके लिए आसान नहीं था। क्योंकि जब उन्होंने डॉक्टरी छोड़ने का फैसला किया तब वो करियर के पीक पर थे। घर में भी विरोध के स्वर उठे, लेकिन उन्होंने परिवार को समझा दिया कि उनका फैसला अटल है। डॉ. सिंघल बताते हैं कि उनकी पत्नी खुद डॉक्टर हैं, इसलिए उन्हें ये समझा पाना काफी मुश्किल था कि वह इतना बढ़िया करियर आखिर क्यों छोड़ना चाहते हैं? जब वह डॉक्टरी छोड़ने का मन बना चुके थे तो उनके दोस्तों ने भी उनका काफी मजाक उड़ाया। दोस्त सवाल पूछते थे कि आप तो अपोलो जैसे बड़े अस्पताल में हो, जहां एक मरीज की फीस 2 हजार रुपये होती है, फिर क्यों... लेकिन मैंने अपना मन बना लिया था।
दोहे-चौपाई पढ़ने वाले बच्चों की बढ़ी क्रिएटिविटी!डॉ. सिंघल बताते हैं कि वह चाइल्ड स्पेशलिस्ट हैं। जो माताएं बच्चों को लेकर उनके पास चेकअप कराने आती थीं, वह अक्सर उन्हें अमेरिका और ब्रिटेन भेजने की बात करती थीं। लेकिन ज्यादातर बच्चों में संस्कार का अता-पता नहीं होता था। ये देखकर उन्हें काफी दुख होता। उन्होंने कई माताओं को अपने बच्चों को रामचरित मानस के दोहे-चौपाई सुनाने की सलाह दी और उनमें से कुछ ने बाद में दावा किया कि ऐसा करने से उनके बच्चे के आईक्यू में सुधार हुआ है। बच्चे के अंदर क्रिएटिविटी भी बढ़ी है। ऐसे मामलों से भी उनकी इच्छाशक्ति और मजबूत हुई।
15 हजार पुजारियों को जोड़कर कर रहे ये काम मानस के प्रचार-प्रसार के अलावा डॉ. सिंघल देशभर के पुजारियों की भलाई के लिए भी काम करते हैं। डॉ. सिंघल बताते हैं कि वर्तमान में पूजा-पाठ कराने वाले 80 फीसदी पुजारियों के पास आचार्य या शास्त्री की डिग्री नहीं है। ऐसे में वह पुजारियों के प्रशिक्षण के लिए ट्रेनिंग कैंप लगवाते हैं। 10 से 12 हफ्तों का ये ट्रेनिंग कैंप मंदिर में लगाया जाता है और इसके बाद ट्रेनिंग पूरी करने वाले वाले पुजारियों की परीक्षा दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय में होती है। ट्रेनिंग में पुजारियों को ऐसे दोहे और चौपाई कंठस्थ कराई जाती है, जिससे परिवारों को संस्कार का संदेश मिलता है। पुजारी परिवार में जाने पर बच्चों से पूछते हैं कि क्या वह माता-पिता के पैर छूते हैं अगर बच्चे नहीं कहते हैं तो उन्हें मानस के दोहे-चौपाइयों का उदाहरण देकर बड़ों के सम्मान की सीख दी जाती है। डॉ. सिंघल बताते हैं कि उनकी संस्था संस्कृति संज्ञान से करीब 15000 पुजारी जुड़े हुए हैं। प्रशिक्षण लेने वाले पुजारियों की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई है। प्रशिक्षित पुजारियों को यजमान से दक्षिणा भी पहले के मुकाबले ज्यादा मिलने लगी है।
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