बीजिंग: भारत की तरक्की देखकर भला चीन क्यों ना तिलमिलाए। डिफेंस सेक्टर में ऐतिहासिक छलांग लगाते हुए भारत ने अपने पहले इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम (IADWS) का सफल परीक्षण किया है। शनिवार को हुई इस टेस्टिंग में भारत ने एक साथ तीन अलग-अलग लक्ष्यों को मार गिराने की क्षमता दिखाई। इनमें दो हाई-स्पीड अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स और एक मल्टी-कॉप्टर ड्रोन शामिल था, जिन्हें क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (QRSAM), वी-शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (VSHORADS) और लेजर-आधारित डायरेक्टेड एनर्जी वेपन से निशाना बनाया गया।
इस परीक्षण के साथ ही भारत अब लेजर हथियार रखने वाले देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है, जिसमें चीन और अमेरिका जैसे देश हैं। यह सिस्टम मल्टी-लेयर्ड सुरक्षा कवच की दिशा में भारत का पहला बड़ा प्रयोग है, जो आने वाले समय में नेशनल एयर डिफेंस शील्ड का हिस्सा बनेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही 10 साल के भीतर एक आत्मनिर्भर व अत्याधुनिक सुरक्षा ढांचा खड़ा करने का ऐलान कर चुके हैं और यह टेस्ट उसी रोडमैप का हिस्सा है। लेकिन चीन की जलन दिखने लगी है। चीन ने भारत की इस क्षमता पर सवाल भी उठाने शुरू कर दिए हैं।
भारत के एयर डिफेंस सिस्टम पर क्या बोला चीन?
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक डिफेंस एक्सपर्ट के हवाले से लिखा है कि "इस कम दूरी के सिस्टम में लेजर हथियार का इंटीग्रेशन एक उल्लेखनीय विशेषता है, लेकिन इसकी ऑपरेशनल प्रभावशीलता अभी सिद्ध होनी बाकी है, क्योंकि पहले से तय किए गये माहौल में इस तरह का टेस्ट करना आसान होता है, लेकिन युद्ध का माहौल अलग होता है। वहीं बीजिंग की एयरोस्पेस नॉलेज मैगजीन के चीफ एडिटर वांग यानान ने कहा कि एयर डिफेंस सिस्टम में लेजर हथियार का शामिल होना ध्यान खींचने वाला कदम है, लेकिन उन्होंने इसकी ऑपरेशनल विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए।
वांग के मुताबिक, प्रीसेट ट्रेनिंग सिनेरियो में की गई टेस्टिंग वास्तविक युद्ध की परिस्थितियों को पूरी तरह परख नहीं सकती। यानी चीन ने साफ तौर पर इशारा किया कि भारत ने तकनीक तो दिखाई है, परंतु असली चुनौती तब होगी जब इसे मुश्किल और खतरनाक हालात में इस्तेमाल किया जाएगा। यह बयान दरअसल चीन की उस चिंता को दिखाता है कि भारत अब उन देशों की कतार में खड़ा हो गया है जिनके पास लेजर वेपन टेक्नोलॉजी है, एक ऐसा क्लब जिसे बीजिंग हमेशा चुनिंदा मानता रहा है। भारत अब अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी और इजरायल जैसे देशों की लीग में आ चुका है, जिनके पास लेजर डिफेंस सिस्टम है।
चीन की तिलमिलाहट की वजह समझिए
दरअसल, भारत ने जिस एयर डिफेंस का टेस्ट किया है, वो वही तकनीक है जिस पर चीन अपनी एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल (A2/AD) नीति को आधारित करता है, ताकि वह दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में वर्चस्व बनाए रख सके। भारत के लिए लेजर हथियार ड्रोन और क्रूज मिसाइल को भी रोक सकते हैं, जिससे चीन की स्ट्रैटजी पर ही सवाल उठ गये हैं। यही वजह है कि चीन भारत की उपलब्धि को हल्का दिखाने की कोशिश कर रहा है और बार-बार यह कह रहा है कि डेमोंस्ट्रेशन को वास्तविक युद्ध नहीं माना जा सकता।
चीन जानता है कि जैसे ही यह सिस्टम ऑपरेशनल होगा, भारत के पास मल्टी-लेयर सिक्योरिटी होगी, जिसमें मानव रहित ड्रोन्स से लेकर लो-फ्लाइंग एयरक्राफ्ट और क्रूज मिसाइल तक को रोका जा सकेगा। भारत का एयर डिफेंस कितना मजबूत है, चीन इसे पहले ही ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देख चुका है। इसीलिए अगर भारत अपने डिफेंस में नये हथियारों को शामिल करता है तो चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की बौखलाहट तो बढ़ेगी ही।
इस परीक्षण के साथ ही भारत अब लेजर हथियार रखने वाले देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है, जिसमें चीन और अमेरिका जैसे देश हैं। यह सिस्टम मल्टी-लेयर्ड सुरक्षा कवच की दिशा में भारत का पहला बड़ा प्रयोग है, जो आने वाले समय में नेशनल एयर डिफेंस शील्ड का हिस्सा बनेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही 10 साल के भीतर एक आत्मनिर्भर व अत्याधुनिक सुरक्षा ढांचा खड़ा करने का ऐलान कर चुके हैं और यह टेस्ट उसी रोडमैप का हिस्सा है। लेकिन चीन की जलन दिखने लगी है। चीन ने भारत की इस क्षमता पर सवाल भी उठाने शुरू कर दिए हैं।
भारत के एयर डिफेंस सिस्टम पर क्या बोला चीन?
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक डिफेंस एक्सपर्ट के हवाले से लिखा है कि "इस कम दूरी के सिस्टम में लेजर हथियार का इंटीग्रेशन एक उल्लेखनीय विशेषता है, लेकिन इसकी ऑपरेशनल प्रभावशीलता अभी सिद्ध होनी बाकी है, क्योंकि पहले से तय किए गये माहौल में इस तरह का टेस्ट करना आसान होता है, लेकिन युद्ध का माहौल अलग होता है। वहीं बीजिंग की एयरोस्पेस नॉलेज मैगजीन के चीफ एडिटर वांग यानान ने कहा कि एयर डिफेंस सिस्टम में लेजर हथियार का शामिल होना ध्यान खींचने वाला कदम है, लेकिन उन्होंने इसकी ऑपरेशनल विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए।
वांग के मुताबिक, प्रीसेट ट्रेनिंग सिनेरियो में की गई टेस्टिंग वास्तविक युद्ध की परिस्थितियों को पूरी तरह परख नहीं सकती। यानी चीन ने साफ तौर पर इशारा किया कि भारत ने तकनीक तो दिखाई है, परंतु असली चुनौती तब होगी जब इसे मुश्किल और खतरनाक हालात में इस्तेमाल किया जाएगा। यह बयान दरअसल चीन की उस चिंता को दिखाता है कि भारत अब उन देशों की कतार में खड़ा हो गया है जिनके पास लेजर वेपन टेक्नोलॉजी है, एक ऐसा क्लब जिसे बीजिंग हमेशा चुनिंदा मानता रहा है। भारत अब अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी और इजरायल जैसे देशों की लीग में आ चुका है, जिनके पास लेजर डिफेंस सिस्टम है।
चीन की तिलमिलाहट की वजह समझिए
दरअसल, भारत ने जिस एयर डिफेंस का टेस्ट किया है, वो वही तकनीक है जिस पर चीन अपनी एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल (A2/AD) नीति को आधारित करता है, ताकि वह दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में वर्चस्व बनाए रख सके। भारत के लिए लेजर हथियार ड्रोन और क्रूज मिसाइल को भी रोक सकते हैं, जिससे चीन की स्ट्रैटजी पर ही सवाल उठ गये हैं। यही वजह है कि चीन भारत की उपलब्धि को हल्का दिखाने की कोशिश कर रहा है और बार-बार यह कह रहा है कि डेमोंस्ट्रेशन को वास्तविक युद्ध नहीं माना जा सकता।
चीन जानता है कि जैसे ही यह सिस्टम ऑपरेशनल होगा, भारत के पास मल्टी-लेयर सिक्योरिटी होगी, जिसमें मानव रहित ड्रोन्स से लेकर लो-फ्लाइंग एयरक्राफ्ट और क्रूज मिसाइल तक को रोका जा सकेगा। भारत का एयर डिफेंस कितना मजबूत है, चीन इसे पहले ही ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देख चुका है। इसीलिए अगर भारत अपने डिफेंस में नये हथियारों को शामिल करता है तो चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की बौखलाहट तो बढ़ेगी ही।
You may also like
रोहिणी आचार्य ने एसआईआर प्रक्रिया पर उठाया सवाल, बोलीं- 'जिसे कमल नहीं दिख रहा, उसे घोषित किया गया मृत'
मेनका गांधी: बेबाकी और सशक्तिकरण की मिसाल, कांटों भरा तय किया राजनीतिक सफर
रीम शेख ने देसी अंदाज से लूटा फैंस का दिल
महावतार नरसिंह: बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन जारी
दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज के लिए टीम इंडिया का ऐलान