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एडवोकेट वेलफेयर स्कीम की शर्तों में छूट के लिए तैयार नहीं दिल्ली सरकार, जानें किन वकीलों को मिलेगा इसका लाभ

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नई दिल्ली: हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एडवोकेट वेलफेयर स्कीम के बारे में अपना रुख रखा। बीजेपी की रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने कोर्ट से कहा कि वह इस मामले में फिलहाल पिछली सरकार (आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार) की नीति पर ही काम करेगी। इसका मतलब है कि उक्त योजना का लाभ केवल दिल्ली का वोटर आईडी रखने वाले वकीलों तक ही सीमित रहेगा।



इन लोगों को नहीं मिलेगा योजना का लाभ

दिल्ली सरकार के कोर्ट में दिए गए बयान के मुताबिक, एनसीआर में रहने वाले वकीलों को संबंधित योजना का कोई लाभ नहीं मिलेगा, भले ही वो दिल्ली बार काउंसिल द्वारा रजिस्टर्ड वकील हों और यहां की अदालतों में प्रैक्टिस करते हों। दिल्ली सरकार की ओर से यह सफाई जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच के सामने दी गई, जो उन अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें उक्त योजना का दायरा बढ़ाते हुए उसमें एनसीआर में रहने वाले दिल्ली के वकीलों को भी शामिल करने का अनुरोध किया गया ।



मामले की अंतिम सुनवाई 26 को

अपीलकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट केसी मित्तल ने बताया कि दिल्ली सरकार ने इस मामले में पिछली आप सरकार की नीति को ही अपनाने की बात कही। सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील ने यह रुख रखा, जिसके बाद बेंच ने इस मामले को 24 अगस्त को अंतिम सुनवाई के लिए लगा दिया।



सरकार ने नहीं बदला रुख तो करेंगे आंदोलन

दिल्ली सरकार के इस रुख से वकील समुदाय सकते में है। राष्ट्रीय राजधानी की सभी जिला अदालतों की कोऑर्डिनेशन कमिटी के प्रवक्ता नीरज ने चेतावनी देते हुए कहा कि पहले हम अपनी बात को दिल्ली सरकार के सामने रखेंगे, उसके बाद भी सरकार का रुख नहीं बदला तो हक के लिए आंदोलन करेंगे। इससे तो एनसीआर को विकसित करने का मकसद ही विफल हो जाता है।



40 हजार वकीलों को मिल रहा इस योजना का फायदा : एक वकील

जो दिल्ली में रजिस्टर्ड है, यहां प्रैक्टिस करता है, उसे महज इसलिए यहां मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है कि वह वोट यूपी या हरियाणा में देता है। उन्होंने कहा कि आज दिल्ली सरकार लगभग 40 हजार वकीलों को इस योजना का लाभ दे रही है। वोटर आईडी की शर्त हटाने और यहां प्रैक्टिस करने वाले दिल्ली बार काउंसिल के रजिस्टर्ड वकील को इसके दायरे में लाने से सरकार पर कोई ज्यादा आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। उन्होंने अनुमान लगाया कि प्रैक्टिसिंग वकीलों की संख्या जोड़ें तो 50-55 हजार से ज्यादा नहीं होगी और ऐसे में सभी को लाभ मिलना चाहिए।

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