नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और केरल के तिरुवनंतपुरम से पार्टी सांसद शशि थरूर ने देश में   परिवारवाद और वंशवाद की राजनीति पर जोरदार हमला बोल दिया है। उन्होंने कहा है कि भारतीय राजनीति को पारिवारिक व्यवसाय बनाकर रख दिया गया है। उन्होंने एक आर्टिकल लिखा है, जिसमें सीधे तौर पर गांधी-नेहरू परिवार का नाम भी लिया गया है। उन्होंने आर्टिकल में इस मामले को लेकर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी और बीएसपी चीफ मायावती का भी जिक्र किया है और कहा है कि सीधा वारिस नहीं मिला तो इन नेताओं ने भतीजे को ही पार्टी की कमान सौंप दी है।   
   
'परिवारवाद भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा'
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 'इंडियन पॉलिटिक्स आर ए फैमिली बिजनेस'शीर्षक से एक आर्टिकल लिखा है, जिसमें देश की राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद को भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। प्रोजेक्ट सिंडिकेट पर प्रकाशित इस आर्टिकल में थरूर ने कहा है कि वंशवाद की राजनीति ने इस विचार को पक्का कर दिया है कि नेतृत्व करना जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है।
     
'पद को खानदानी विरासत समझ लिया जाता है'
थरूर ने लिखा है, 'यह विश्वास कि राजनीतिक परिवारों के लोग ही नेतृत्व करने के लिए सबसे सही हैं, यह बात गांव की पंचायतों से लेकर संसद के सबसे ऊंचे स्तर तक, भारत की शासन व्यवस्था में गहराई से शामिल है। लेकिन, जब चुने हुए पद को खानदानी विरासत समझ लिया जाता है, तो शासन की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता ही है।'
   
थरूर ने राहुल, प्रियंका का भी लिया नाम
यही नहीं, उन्होंने इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस की राजनीति पर भी सीधा हमला बोल दिया है। उनका कहना है कि 'दशकों तक एक परिवार ने भारत की राजनीति पर हावी रहा है। नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव, जिसमें स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी; और अभी विपक्ष के नेता राहुल गांधी और सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा शामिल हैं, भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई के इतिहास से जुड़ा है। लेकिन, इसने इस विचार को भी स्थापित किया है कि राजनीतिक नेतृत्व जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है। भारतीय राजनीति में यह विचार हर पार्टी में, हर क्षेत्र में और हर स्तर पर फैल गया है।'
   
ममता, माया भी थरूर के निशाने पर
उन्होंने अपने लेख में परिवारवाद को बढ़ावा देने वाले नेताओं के तौर पर ममता और मायावती का भी नाम लिया है। थरूर लिखते हैं, 'ममता बनर्जी और कुमारी मायावती जैसी महिला नेताओं ने भी, जिनके कोई सीधे कोई वारिस नहीं हैं, अपने भतीजों को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया है।'
   
'परिवारवाद की जगह योग्यता को महत्त्व मिले'
थरूर आगे लिखते हैं, ' समय आ गया है कि भारत में परिवारवाद की जगह योग्यता को महत्त्व दिया जाए। इसके लिए बड़े सुधारों की आवश्यकता होगी। जैसे,कानून बनाकर नेताओं के लिए तय समय सीमा तय की जाए। पार्टियों के अंदर भी सही तरह से चुनाव हों। साथ ही, लोगों को भी जागरूक और ताकतवर करना होगा, जिससे वे नेताओं को उनकी काबिलियत पर चुनें। जब तक भारतीय राजनीति एक पारिवारिक बिजनेस बनी रहेगी, तब तक लोकतंत्र का असली इरादा,'जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन'पूरी तरह से पूर्ण नहीं होगा।'
   
  
'परिवारवाद भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा'
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'पद को खानदानी विरासत समझ लिया जाता है'
थरूर ने लिखा है, 'यह विश्वास कि राजनीतिक परिवारों के लोग ही नेतृत्व करने के लिए सबसे सही हैं, यह बात गांव की पंचायतों से लेकर संसद के सबसे ऊंचे स्तर तक, भारत की शासन व्यवस्था में गहराई से शामिल है। लेकिन, जब चुने हुए पद को खानदानी विरासत समझ लिया जाता है, तो शासन की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता ही है।'
थरूर ने राहुल, प्रियंका का भी लिया नाम
यही नहीं, उन्होंने इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस की राजनीति पर भी सीधा हमला बोल दिया है। उनका कहना है कि 'दशकों तक एक परिवार ने भारत की राजनीति पर हावी रहा है। नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव, जिसमें स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी; और अभी विपक्ष के नेता राहुल गांधी और सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा शामिल हैं, भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई के इतिहास से जुड़ा है। लेकिन, इसने इस विचार को भी स्थापित किया है कि राजनीतिक नेतृत्व जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है। भारतीय राजनीति में यह विचार हर पार्टी में, हर क्षेत्र में और हर स्तर पर फैल गया है।'
ममता, माया भी थरूर के निशाने पर
उन्होंने अपने लेख में परिवारवाद को बढ़ावा देने वाले नेताओं के तौर पर ममता और मायावती का भी नाम लिया है। थरूर लिखते हैं, 'ममता बनर्जी और कुमारी मायावती जैसी महिला नेताओं ने भी, जिनके कोई सीधे कोई वारिस नहीं हैं, अपने भतीजों को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया है।'
'परिवारवाद की जगह योग्यता को महत्त्व मिले'
थरूर आगे लिखते हैं, ' समय आ गया है कि भारत में परिवारवाद की जगह योग्यता को महत्त्व दिया जाए। इसके लिए बड़े सुधारों की आवश्यकता होगी। जैसे,कानून बनाकर नेताओं के लिए तय समय सीमा तय की जाए। पार्टियों के अंदर भी सही तरह से चुनाव हों। साथ ही, लोगों को भी जागरूक और ताकतवर करना होगा, जिससे वे नेताओं को उनकी काबिलियत पर चुनें। जब तक भारतीय राजनीति एक पारिवारिक बिजनेस बनी रहेगी, तब तक लोकतंत्र का असली इरादा,'जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन'पूरी तरह से पूर्ण नहीं होगा।'
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