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डॉक्टर न कंपाउंडर, कैसे हो बेजुबानों की देखभाल? यूपी में पशु चिकित्सकों के 25% और कंपाउंडर के 60% पद खाली

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दीप सिंह, लखनऊ: पशुओं के इलाज के अलावा गोशालाओं की देखभाल, टीकाकरण, निरीक्षण सहित कई काम पशु चिकित्सकों को करने होते हैं। विभाग में लगातार चलने वाले अभियानों की जिम्मेदारी भी इन्हीं की होती है। इनके काम में मदद के लिए पशुपालन विभाग में कंपाउंडर के पद सृजित किए गए हैं लेकिन यूपी में कई साल से भर्तियां ही नहीं हुईं। इस वजह से पशु चिकित्सकों के 25% पद और कम्पाउंडर के करीब 60% पद खाली हैं। विभाग प्रशिक्षण देकर पैरावेट और पशु मित्र तैयार करता है लेकिन उनको भी कोई मानदेय नहीं दिया जाता। विभिन्न योजनाओं में जब काम होता है तो प्रोत्साहन राशि दी जाती है, वह भी समय पर नहीं मिलती। कहां, कितने पद खालीपशु चिकित्साधिकारी और कंपाउंडर पशुपालन विभाग की रीढ़ हैं। कोई भी योजना या अभियान चलता है तो इनकी ही जिम्मेदारी होती है लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है। सृजित पद भी पूरे नहीं भरे हैं। प्रदेश में कुल 2,206 पशु चिकित्सालय हैं। सभी में एक-एक पशु चिकित्साधिकारी और उप पशु चिकित्साधिकारी के पद सृजित हैं, इनमें से 567 पद खाली हैं। कंपाउंडरों की संख्या तो और भी कम है। सभी अस्पतालों पर एक-एक कंपाउंडर/फार्मासिस्ट का पद सृजित है। करीब 800 पद ही भरे हैं। इस तरह इनके करीब 60% पद खाली हैं। 60 हजार पशुओं पर एक कंपाउंडरये पद भी तब सृजित किए गए थे, जब पशुओं की संख्या कम थी। अब तो नए पदों की सृजन की भी जरूरत है। भारत सरकार के मानक के अनुसार 5,000 पशुओं पर एक डॉक्टर और एक कंपाउंडर होना चाहिए। यूपी में करीब 25 हजार पशुओं पर एक डॉक्टर और 60 हजार पशुओं पर एक कंपाउंडर तैनात हैं। प्रोत्साहन राशि भी समय पर नहींइस बीच सरकार ने कई अभियान भी चलाए। नस्ल सुधार कार्यक्रम के तहत कृत्रिम गर्भाधान करवाया जाता है। ऐसे ही कई अभियानों और लोगों में जागरूकता के लिए पैरावेट तैयार किए गए। बाद में नई योजनाओं में इनका नाम पशु मित्र कर दिया गया। इनका कोई निश्चित मानदेय नहीं है। जब किसी योजना के तहत कोई अभियान चलता है तो प्रति पशु 50-100 रुपये तक प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इस राशि का भुगतान भी काफी देर से किया जाता है। जब अभियान नहीं चलता तो यह राशि उनको नहीं मिलती। हाल ही में आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इनके मानदेय की भी मांग की है। पशु चिकित्सकों और डॉक्टरों की जिम्मेदारीपशुओं का इलाज, टीकाकरण, देखभाल, कृत्रिम गर्भाधान, बधियाकरण, गोशालाओं की देखभाल, चारे की व्यवस्था करना, पशु बीमा, मृत पशुओं का पोस्टमॉर्टम, यदि कोई महामारी हो तो उसके प्रति जागरूकता और सैंपलिंग सहित समय-समय पर चलने वाले कई अभियान, प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान। क्या दिक्कतें आती हैं?डॉक्टरों और कंपाउंडरों पर ही विभाग की ज्यादातर जिम्मेदारियां हैं। कोई भी अभियान उनके भरोसे ही चलता है। पैरावेट या पशु मित्रों से काम लिया जाता है लेकिन वे कोई भी काम स्वतंत्र तौर पर करने के लिए सक्षम नहीं हैं। वे डॉक्टर की निगरानी में ही काम कर सकते हैं। डॉक्टरों और कंपाउंडरों पर पहले से इतनी जिम्मेदारियां हैं। उनकी संख्या कम होने के कारण निगरानी तंत्र पर असर पड़ता है। यदि पैरावेट या पशु मित्र पर कोई काम छोड़ दिया जाता है तो चूक की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में बड़ा संकट खड़ा हो जाता है। उसकी भी जिम्मेदारी डॉक्टरों पर ही आती है। विभागीय योजनाएं ठीक से धरातल पर नहीं उतर पातीं।
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