क्रिशा के शौक और ख्वाब उन्हें दूसरों से अलग बनाते हैं। वो डॉक्टर बनना चाहती हैं, साथ ही ड्राइंग, डांस, सिंगिंग और ट्रैवलिंग में भी उन्हें दिलचस्पी है। बंजी जंपिंग, स्काई डाइविंग, स्कूबा डाइविंग जैसे एडवेंचर भी उतने ही आकर्षित करते हैं, जितना कि एस्क्लेपियस की छड़ी वाला।
मेहंदी लगाने की उनकी कला शादी-ब्याह में खास डिमांड में रहती है। कई बार लोग हंसी मजाक में क्रिशा से सवाल भी कर लेते हैं कि इतनी आर्टिस्टिक होने के बावजूद तुम डॉक्टर क्यों बनना चाहती हो। आइए, क्रिशा से जानते हैं कि उनके लिए नवरात्रि, शक्ति और सशक्तिकरण की क्या परिभाषा है...
शक्ति और सशक्तिकरण का संदेश

नवरात्रि का त्योहार समय के साथ बदलता रहा है। पहले जहां पूजा और उपवास इसका केंद्र हुआ करते थे, वहीं अब यह सामाजिक और सांस्कृतिक रंगों से भर गया है। लेकिन इस बदलाव में भी पॉजिटिविटी है। मैं ज्यादा पहले की बात नहीं करूंगी। मैं अपने बचपन की कहानी बताती हूं। उस वक्त को मैं याद करती हूं तो लगता है कि तब लोग डेडिकेशन से नौ रूपों की पूजा करते थे। रंग पहनने का भी उतना ही ध्यान रखा जाता था। अब लोग पूजा से ज्यादा गरबा, सोशलाइजिंग और फोटो क्लिक करने पर फोकस करते हैं।
लोग जुड़ते हैं, मिलते हैं, एक-दूसरे को सेलिब्रेट करते हैं। गरबा भी अब डीजे, फूड स्टॉल और शॉपिंग आदि सब होता है। नवरात्रि का फेस्टिवल डिवोशन से ज्यादा कमर्शियल हो गया है। पहले लोग मूमेंट को जीते थे, अब कैप्चर करने में जुटे रहते हैं। बदलाव सकारात्मक है। बस हमें इतना ध्यान रखना है कि त्योहार का असली मकसद-देवी की शक्ति और स्त्री सशक्तिकरण का संदेश पीछे न छूट जाए।
सशक्तिकरण के मायने क्या हैं?
क्रिशा बताती हैं कि मेरे लिए 'शक्ति' का मतलब है खुद को जानना और खुद पर विश्वास करना। जब मैं घूमती हूं, नए-नए एडवेंचर ट्राय करती हूं या अपनी मेहनत से कुछ हासिल करती हूं, तो खुद को सशक्त महसूस करती हूं। शक्ति सिर्फ देवी में नहीं, हर लड़की में होती है। जरूरत है उसे पहचानने की। बस मैं खुद में छुपी उस शक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही हूं ताकि खुद को ज्यादा सशक्त बना सकूं।
मां से कितनी अलग है आपकी जिंदगी?
मां स्कूल टीचर हैं। वो मेरा और मेरे छोटे भाई का पूरा ख्याल रखती हैं। समय से स्कूल जाना। घर की जिम्मेदारी संभालना और फिर भी न कभी किसी शिकायत करना और माथे पर एक भी शिकन लाना। न कभी मुझे और मेरे भाई को किसी बात के लिए रोकना-टोकना। मां के जमाने में न मोबाइल था, न इंटरनेट और न हमारी जितनी आजादी। न पसंद के कपड़े पहन सकती थीं और न बिना बताए या ऑड टाइम पर घर से बाहर आ जा सकती थीं। उनके पास करियर के नाम पर भी टीचर और बैंकर बनने का ही ऑप्शन था। अब महिलाएं हर फील्ड में करियर बना रही हैं।
महिलाएं अब सिर्फ घर तक सीमित नहीं
मां के इतने सारे संघर्ष और चुनौतियों के इतर वो हमारा पूरा ख्याल रखती हैं। मुझे पढ़ने और अपनी पसंद के काम करने की पूरी आजादी मिलती है। मां और उनकी पीढ़ी आज भी घर और बाहर दोनों को संभालती हैं। डिजिटल कामों में वे बेटियों और बेटों से मदद लेती हैं, लेकिन कभी शिकायत नहीं करतीं कि उनके पास कम आजादी थी। महिलाएं अब सिर्फ घर तक सीमित नहीं हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, आर्मी, स्पोर्ट्स, एंटरटेनमेंट- हर जगह महिलाएं मजबूत पहचान बना रही हैं। यही असली सशक्तिकरण है कि कोई भी लड़की अपने सपनों को बिना झिझक जी सके।
अपनी शक्ति को पहचानें

नवरात्रि का असली मतलब है खुद की शक्ति को पहचानना। हम जेन-जी को सिर्फ सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने से आगे बढ़कर अपने टैलेंट, मेहनत और विश्वास पर काम करना चाहिए। डरना नहीं है, हर मौके को एक्सप्लोर करना है। खुद को जानना और खुद को जीना ही असली एम्पावरमेंट है।
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