अमितेश सिंह, बलिया: उत्तर प्रदेश पुलिस के बड़े अभियान " ऑपरेशन कन्विक्शन " के तहत बलिया पुलिस ने एक पुराने मारपीट के मामले में आरोपी को सजा दिलाने में कामयाबी हासिल की है। पुलिस अधीक्षक ओमवीर सिंह के निर्देशन में मॉनिटरिंग सेल और अभियोजन विभाग की मजबूत पैरवी से आरोपी को अदालत ने दोषी ठहराया।
गुरुवार को बलिया के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने थाना फेफना में साल 2019 में दर्ज मामले (मुकदमा नंबर 11/2019, धारा 323 आईपीसी) में आरोपी बहादुर बिंद (पुत्र स्वर्गीय जगदीश बिंद, निवासी माल्देपुर, थाना फेफना) को मारपीट का दोषी मानते हुए न्यायालय उठने तक की सजा और 500 रुपये का जुर्माना लगाया। अगर जुर्माना नहीं भरा तो आरोपी को अतिरिक्त 2 दिन जेल में रहना होगा।
'न्यायालय उठने तक की सजा' का मतलब क्या?
यह सजा आमतौर पर हल्के अपराधों में दी जाती है। नवभारत टाइम्स डिजिटल की टीम ने इसे सरल ढंग से समझने के लिए गाजीपुर न्यायालय के एडीसी क्रिमिनल नीरज श्रीवास्तव से बात की। उन्होंने बताया कि कोर्ट के फैसले के अनुसार, यह सजा कोर्ट के कार्य समय की होती है यानी सुबह 10:30 बजे से शाम 4:00 बजे तक। आरोपी को इसी अवधि तक हिरासत में रखा जाता है। साथ ही 500 रुपये जुर्माना भी देना होता है। अगर जुर्माना नहीं दिया तो अतिरिक्त 2 दिन की जेल हो सकती है।
क्या थी घटना?
शिकायतकर्ता ने पुलिस में बताया था कि आरोपी बहादुर ने उसे बुरी तरह मारा-पीटा था। पुलिस ने शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की, जांच पूरी की और केस कोर्ट में मजबूती से लड़ा। अभियोजन अधिकारी वीरपाल सिंह ने केस की पैरवी की।
बलिया पुलिस की यह कामयाबी "ऑपरेशन कन्विक्शन" का हिस्सा है। इसमें पुराने मामलों में दोषियों को सजा दिलाने पर जोर दिया जा रहा है। पुलिस का कहना है कि अपराधियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
गुरुवार को बलिया के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने थाना फेफना में साल 2019 में दर्ज मामले (मुकदमा नंबर 11/2019, धारा 323 आईपीसी) में आरोपी बहादुर बिंद (पुत्र स्वर्गीय जगदीश बिंद, निवासी माल्देपुर, थाना फेफना) को मारपीट का दोषी मानते हुए न्यायालय उठने तक की सजा और 500 रुपये का जुर्माना लगाया। अगर जुर्माना नहीं भरा तो आरोपी को अतिरिक्त 2 दिन जेल में रहना होगा।
'न्यायालय उठने तक की सजा' का मतलब क्या?
यह सजा आमतौर पर हल्के अपराधों में दी जाती है। नवभारत टाइम्स डिजिटल की टीम ने इसे सरल ढंग से समझने के लिए गाजीपुर न्यायालय के एडीसी क्रिमिनल नीरज श्रीवास्तव से बात की। उन्होंने बताया कि कोर्ट के फैसले के अनुसार, यह सजा कोर्ट के कार्य समय की होती है यानी सुबह 10:30 बजे से शाम 4:00 बजे तक। आरोपी को इसी अवधि तक हिरासत में रखा जाता है। साथ ही 500 रुपये जुर्माना भी देना होता है। अगर जुर्माना नहीं दिया तो अतिरिक्त 2 दिन की जेल हो सकती है।
क्या थी घटना?
शिकायतकर्ता ने पुलिस में बताया था कि आरोपी बहादुर ने उसे बुरी तरह मारा-पीटा था। पुलिस ने शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की, जांच पूरी की और केस कोर्ट में मजबूती से लड़ा। अभियोजन अधिकारी वीरपाल सिंह ने केस की पैरवी की।
बलिया पुलिस की यह कामयाबी "ऑपरेशन कन्विक्शन" का हिस्सा है। इसमें पुराने मामलों में दोषियों को सजा दिलाने पर जोर दिया जा रहा है। पुलिस का कहना है कि अपराधियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
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