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RSS से बातचीत, शंकराचार्यों की मेजबानी, खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए यासीन मलिक ने क्या दी दलील, जान लीजिए

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श्रीनगर/नई दिल्ली: जेकेएलएफ के अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने दिल्ली हाई कोर्ट में ऐफिडेविट देकर अपने ऊपर लगे कश्मीरी पंडितों की हत्या और गैंग की साजिश रचने के आरोपों को खारिज किया है। मलिक ने हलफनामे में राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट और आईबी अफसरों से हुई मुलाकातों का हवाला दिया है। उम्र कैद की सजा पा चुके अलगाववादी नेता ने पूर्व प्रधानमंत्रियों चंद्रशेखर, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारों में हुई बातचीत का भी जिक्र किया । हलफनामे में हैरान करने वाले एक-दो घटनाओं का जिक्र करते हुए दावा किया गया है कि मलिक से आरएसएस के नेताओं ने भी लंबी बातचीत की। इसके अलावा हिंदू धर्म में सर्वोच्च संस्था माने जाने वाले दो शंकराचार्यों ने भी श्रीनगर स्थित उसके घर का दौरा किया।





'आरोप साबित हुए खुद फांसी लगा लूंगा'

एनआईए के आरोपों का जवाब देते हुए तिहाड़ जेल में बंद यासीन मलिक ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार में अपनी भूमिका से इनकार किया है। हलफनामे में मलिक ने कहा कि अगर ये घिनौने आरोप सच साबित होते हैं तो मैं बिना किसी मुकदमे के खुद को फांसी लगा लूंगा। अपना नाम इतिहास के पन्नों में मानव जाति के लिए एक कलंक और अभिशाप के रूप में दर्ज करवा दूंगा। उसने आरोप लगाया है कि एनआईए जम्मू की टाडा अदालत में पहले से लंबित दशकों पुराने मामले उठाकर उसे बदनाम कर रही है।





आरएसएस नेतृत्व के साथ भी संवाद

यासीन मलिक ने दावा किया कि मेरे जैसे व्यक्ति से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 10 फुट के डंडे से छूने से भी परहेज करता है, मगर आरएसएस नेतृत्व ने भी उससे सीधा संवाद किया। मलिक का दावा है कि 2001 में सेंटर फॉर डायलॉग एंड रिकंसिलिएशन ने नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में उसकी आरएसएस नेताओं से मीटिंग कराई थी। यह मीटिंग करीब पांच घंटे चली थी। उसने हलफनामे में लिखा है कि आरएसएस के थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के अध्यक्ष एडमिरल के. एन. सूरी ने कई बार लंच के लिए अपने आवास और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर आने का निमंत्रण दिया था।





दो शंकराचार्य गए थे मलिक के घर

जेकेएलएफ के नेता ने अपनी छवि को बेदाग साबित करते हुए बताया है कि उसके श्रीनगर स्थित निवास पर दो शंकराचार्य एक बार नहीं, बल्कि अनगिनत बार आए। हिंदू धर्मगुरुओं ने उसके साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी। उसने सवाल करते हुए लिखा है कि क्या यह दिलचस्प और विचारणीय नहीं है कि मेरे जैसे व्यक्ति को दूर रखने के बजाय बहुसंख्यक समुदाय के ऐसे प्रतिनिधियों ने मेरे साथ अपना ईश्वरीय नाम जोड़ने का फैसला किया? मलिक ने दावा किया है कि उसकी राजनीति कभी सांप्रदायिक नहीं रही। उसने 1996 के बाद हुए संग्रामपोरा, वंधामा, शोपियां और डोडा में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की सार्वजनिक तौर पर निंदा की थी। अलगाववादी नेता ने बताया है कि उसने कश्मीरी पंडितों के साथ मुलाकात कीं, जो उन दिनों अखबारों में सुर्खियां बनी थीं।





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