नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेल की कीमतों में काफी हलचल मची हुई है। रूस के खिलाफ ट्रंप के नए 'एक्शन' प्लान से ऐसा हुआ है। अमेरिका यूरोपीय सहयोगियों के साथ मिलकर इसे अंजाम देगा। वह रूस के बैंकिंग और तेल निर्यात से जुड़े महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाने वाले उपायों पर विचार कर रहा है। यह ट्रंप प्रशासन के रूस पर और दबाव बनाने की तैयारी का हिस्सा है। यूक्रेन में युद्ध को खत्म करने में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की देरी को देखते हुए अमेरिका रूस की अर्थव्यवस्था के अहम क्षेत्रों को निशाना बनाने वाले नए प्रतिबंधों की योजना बना रहा है। यह जानकारी न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने दी है। अमेरिका यूरोपीय देशों से भी कह रहा है कि वे फ्रीज रूसी संपत्तियों का इस्तेमाल करके यूक्रेन के लिए अमेरिकी हथियार खरीदने के यूरोपीय संघ के प्रस्ताव का समर्थन करें। अमेरिका के भीतर भी इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या रूस की घरेलू संपत्तियों का इस्तेमाल यूक्रेन के युद्ध के लिए धन जुटाने में किया जा सकता है। कच्चे तेल का कनेक्शन जुड़े होने से इस प्लान से भारत पर भी असर पड़ने का खतरा है।
रूस के प्रमुख तेल दिग्गजों लुकोइल और रोसनेफ्ट पर अमेरिका की ओर से लगे नए प्रतिबंधों ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों में हलचल मचाई है। इस घोषणा के तुरंत बाद कच्चे तेल (क्रूड) की कीमतों में 2 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा का उछाल दर्ज किया गया। इसने भारत और चीन जैसे बड़े खरीदारों को गहरी चिंता में डाल दिया है। वाशिंगटन और उसके सहयोगी जहां मॉस्को पर दबाव बनाने के लिए अगली रणनीति पर विचार कर रहे हैं। वहीं, भारत के लिए ये प्रतिबंध एक दोहरी चुनौती पेश कर रहे हैं। एक ओर महंगाई और ईंधन की कीमतों के बढ़ने की आशंका है। वहीं, दूसरी ओर अपनी विशाल ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए तुरंत वैकल्पिक और विश्वसनीय सप्लायर्स को खोजने की मजबूरी। भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता अब इस बात पर निर्भर करेगी कि वह तेजी से बदलते इस भू-राजनीतिक परिदृश्य में कितनी कुशलता से अपनी 'कच्चे तेल की सप्लाई चेन' को सुरक्षित करता है।
यह अभी साफ नहीं है कि ट्रंप प्रशासन नए उपायों को तुरंत लागू करेगा या नहीं। लेकिन, ये विकल्प बताते हैं कि जनवरी में ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद से अमेरिका ने प्रतिबंधों का एक बड़ा और लचीला टूलकिट तैयार किया है। राष्ट्रपति ने इसी हफ्ते रूस के खिलाफ अपना पहला प्रतिबंध लगाया था।
सप्लाई चेन टूटने का डर
ट्रंप खुद को वैश्विक शांतिदूत के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने माना है कि यूक्रेन में तीन साल से चल रहे युद्ध को खत्म करना उनकी उम्मीद से कहीं ज्यादा मुश्किल साबित हुआ है। यूरोपीय सहयोगी ट्रंप के पुतिन के प्रति कभी नरम तो कभी सख्त रवैये के आदी हो चुके हैं। वे बारीकी से उनके हर कदम पर नजर रख रहे हैं और अपने अगले कदमों पर विचार कर रहे हैं। एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि वाशिंगटन उम्मीद करता है कि यूरोपीय साथी अगले बड़े कदम में अगुवाई करेंगे, शायद नए प्रतिबंधों या टैरिफ के जरिए।
रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप कुछ हफ्तों का इंतजार करना चाहते हैं ताकि वे नवीनतम प्रतिबंधों पर मॉस्को की प्रतिक्रिया का अंदाजा लगा सकें। इन प्रतिबंधों ने रूसी तेल दिग्गजों लुकोइल और रोसनेफ्ट को निशाना बनाया था। इस घोषणा के बाद तेल की कीमतों में 2 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। इससे चीन और भारत जैसे प्रमुख खरीदारों को वैकल्पिक कच्चे तेल की सप्लाई ढूंढनी पड़ी।
बैंकिंग और ऊर्जा निशाने परतैयार किए जा रहे अतिरिक्त प्रतिबंधों में रूस के बैंकिंग क्षेत्र और उसके तेल निर्यात के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने वाले उपाय शामिल हैं। पिछले हफ्ते यूक्रेनी अधिकारियों ने अमेरिका को नए प्रतिबंधों के प्रस्ताव दिए थे। इनमें से एक प्रस्ताव सभी रूसी बैंकों को डॉलर-आधारित लेनदेन से पूरी तरह से काटने का था। यह साफ नहीं है कि प्रशासन इन अनुरोधों पर कितनी गंभीरता से विचार कर रहा है।
इस बीच, अमेरिकी सीनेट ने एक द्विदलीय प्रतिबंध पैकेज को पारित करने के प्रयासों को फिर से शुरू किया है, जो महीनों से अटका हुआ था। एक सूत्र ने बताया कि ट्रंप इस विधेयक का समर्थन करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, इस तरह के समर्थन की उम्मीद इस महीने नहीं है। वित्त विभाग ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निवेश और आर्थिक सहयोग के विशेष दूत किरिल दिमित्रिएव ने उम्मीद जताई कि अमेरिका, यूक्रेन और रूस युद्ध को समाप्त करने के लिए एक राजनयिक समाधान के करीब हैं।
भारत पर कैसे होगा असर?रूस अमेरिकी प्रतिबंधों का भारत पर सीधा और गंभीर आर्थिक असर होगा। इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता दोनों खतरे में पड़ सकती हैं। चूंकि भारत अपनी 85% से ज्यादा तेल जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। पिछले दो वर्षों में रियायती रूसी तेल से अरबों डॉलर की बचत की है। इसलिए इन प्रतिबंधों के कारण भारत का तेल आयात बिल बढ़ेगा और देश में महंगाई की आग लगने का खतरा है। भारतीय तेल रिफाइनरी कंपनियों को अब रूसी सप्लाई के स्थान पर मध्य-पूर्व, अमेरिका या अन्य क्षेत्रों से तेल खरीदना पड़ेगा। इससे आयात की लागत बढ़ जाएगी। भुगतान (डॉलर आधारित लेन-देन) में जटिलता आएगी। अपनी सप्लाई चेन को सुरक्षित करने के लिए भारत को तुरंत वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ेगी।
रूस के प्रमुख तेल दिग्गजों लुकोइल और रोसनेफ्ट पर अमेरिका की ओर से लगे नए प्रतिबंधों ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों में हलचल मचाई है। इस घोषणा के तुरंत बाद कच्चे तेल (क्रूड) की कीमतों में 2 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा का उछाल दर्ज किया गया। इसने भारत और चीन जैसे बड़े खरीदारों को गहरी चिंता में डाल दिया है। वाशिंगटन और उसके सहयोगी जहां मॉस्को पर दबाव बनाने के लिए अगली रणनीति पर विचार कर रहे हैं। वहीं, भारत के लिए ये प्रतिबंध एक दोहरी चुनौती पेश कर रहे हैं। एक ओर महंगाई और ईंधन की कीमतों के बढ़ने की आशंका है। वहीं, दूसरी ओर अपनी विशाल ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए तुरंत वैकल्पिक और विश्वसनीय सप्लायर्स को खोजने की मजबूरी। भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता अब इस बात पर निर्भर करेगी कि वह तेजी से बदलते इस भू-राजनीतिक परिदृश्य में कितनी कुशलता से अपनी 'कच्चे तेल की सप्लाई चेन' को सुरक्षित करता है।
यह अभी साफ नहीं है कि ट्रंप प्रशासन नए उपायों को तुरंत लागू करेगा या नहीं। लेकिन, ये विकल्प बताते हैं कि जनवरी में ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद से अमेरिका ने प्रतिबंधों का एक बड़ा और लचीला टूलकिट तैयार किया है। राष्ट्रपति ने इसी हफ्ते रूस के खिलाफ अपना पहला प्रतिबंध लगाया था।
सप्लाई चेन टूटने का डर
ट्रंप खुद को वैश्विक शांतिदूत के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने माना है कि यूक्रेन में तीन साल से चल रहे युद्ध को खत्म करना उनकी उम्मीद से कहीं ज्यादा मुश्किल साबित हुआ है। यूरोपीय सहयोगी ट्रंप के पुतिन के प्रति कभी नरम तो कभी सख्त रवैये के आदी हो चुके हैं। वे बारीकी से उनके हर कदम पर नजर रख रहे हैं और अपने अगले कदमों पर विचार कर रहे हैं। एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि वाशिंगटन उम्मीद करता है कि यूरोपीय साथी अगले बड़े कदम में अगुवाई करेंगे, शायद नए प्रतिबंधों या टैरिफ के जरिए।
रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप कुछ हफ्तों का इंतजार करना चाहते हैं ताकि वे नवीनतम प्रतिबंधों पर मॉस्को की प्रतिक्रिया का अंदाजा लगा सकें। इन प्रतिबंधों ने रूसी तेल दिग्गजों लुकोइल और रोसनेफ्ट को निशाना बनाया था। इस घोषणा के बाद तेल की कीमतों में 2 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। इससे चीन और भारत जैसे प्रमुख खरीदारों को वैकल्पिक कच्चे तेल की सप्लाई ढूंढनी पड़ी।
बैंकिंग और ऊर्जा निशाने परतैयार किए जा रहे अतिरिक्त प्रतिबंधों में रूस के बैंकिंग क्षेत्र और उसके तेल निर्यात के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने वाले उपाय शामिल हैं। पिछले हफ्ते यूक्रेनी अधिकारियों ने अमेरिका को नए प्रतिबंधों के प्रस्ताव दिए थे। इनमें से एक प्रस्ताव सभी रूसी बैंकों को डॉलर-आधारित लेनदेन से पूरी तरह से काटने का था। यह साफ नहीं है कि प्रशासन इन अनुरोधों पर कितनी गंभीरता से विचार कर रहा है।
इस बीच, अमेरिकी सीनेट ने एक द्विदलीय प्रतिबंध पैकेज को पारित करने के प्रयासों को फिर से शुरू किया है, जो महीनों से अटका हुआ था। एक सूत्र ने बताया कि ट्रंप इस विधेयक का समर्थन करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, इस तरह के समर्थन की उम्मीद इस महीने नहीं है। वित्त विभाग ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निवेश और आर्थिक सहयोग के विशेष दूत किरिल दिमित्रिएव ने उम्मीद जताई कि अमेरिका, यूक्रेन और रूस युद्ध को समाप्त करने के लिए एक राजनयिक समाधान के करीब हैं।
भारत पर कैसे होगा असर?रूस अमेरिकी प्रतिबंधों का भारत पर सीधा और गंभीर आर्थिक असर होगा। इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता दोनों खतरे में पड़ सकती हैं। चूंकि भारत अपनी 85% से ज्यादा तेल जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। पिछले दो वर्षों में रियायती रूसी तेल से अरबों डॉलर की बचत की है। इसलिए इन प्रतिबंधों के कारण भारत का तेल आयात बिल बढ़ेगा और देश में महंगाई की आग लगने का खतरा है। भारतीय तेल रिफाइनरी कंपनियों को अब रूसी सप्लाई के स्थान पर मध्य-पूर्व, अमेरिका या अन्य क्षेत्रों से तेल खरीदना पड़ेगा। इससे आयात की लागत बढ़ जाएगी। भुगतान (डॉलर आधारित लेन-देन) में जटिलता आएगी। अपनी सप्लाई चेन को सुरक्षित करने के लिए भारत को तुरंत वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ेगी।
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