गुवाहाटी : असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आलोचना की। उन्हें बांग्लादेश का जिक्र करके कोसा। हिमंत ने कहा कि इंदिरा गांधी ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की ऐतिहासिक जीत और बांग्लादेश की स्थापना के बाद स्थिति को ठीक से नहीं संभाला। उन्होंने आरोप लगाया कि उस अवधि के राजनीतिक नेतृत्व की विफलता के कारण बांग्लादेश की स्थापना एक ऐतिहासिक अवसर था, जिसे गंवा दिया गया।कांग्रेस नेता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस घोषणा के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना कर रहे हैं कि वाशिंगटन की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान पूर्ण और तत्काल सैन्य हमले रोकने पर सहमत हो गए हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच शनिवार को जमीन, हवा और समुद्र पर सभी तरह की गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई को तत्काल प्रभाव से रोकने की सहमति बनी। कांग्रेस मोदी पर लगा रही आरोपकांग्रेस के अलावा कई अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी मोदी की तुलना 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान स्थिति को संभालने के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तरीके से की है। कांग्रेस नेताओं की आलोचना के बाद मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा भड़क गए। उन्होंने बांग्लादेश की स्थापना एक मिथक, एक रणनीतिक विजय, एक कूटनीतिक मूर्खता’ शीर्षक के साथ सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की। हिमंत बोले- 1971 में सेना की जीत ऐतिहासिक थीहिमंत बिस्व सरमा ने लिखा, 'भारत की 1971 की सैन्य जीत निर्णायक और ऐतिहासिक थी। इसने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया और बांग्लादेश की स्थापना की। हालांकि, हमारे सैनिकों ने युद्ध के मैदान में शानदार सफलता दर्ज की, लेकिन भारत का राजनीतिक नेतृत्व स्थायी रणनीतिक लाभ हासिल करने में नाकाम रहा। 'देश इंदिरा गांधी से पूछता सवाल'हिमंत बिस्व शर्मा ने दावा किया कि बांग्लादेश की स्थापना को अकसर कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जाता है, लेकिन इतिहास कुछ और ही कहानी बयां करता है। 1971 में भारत की सैन्य जीत के बावजूद रणनीतिक दूरदर्शिता नहीं दिखाई जा सकी। जो एक नई क्षेत्रीय व्यवस्था कायम करने का अवसर साबित हो सकता था। उसे एकतरफा उदारता तक सीमित कर दिया गया। अगर इंदिरा गांधी आज जिंदा होतीं, तो राष्ट्र उनसे हमारे सशस्त्र बलों की ऐतिहासिक जीत के बाद की स्थिति को गलत तरीके से संभालने के लिए सवाल करता। 'भारत ने किया था धर्मनिपेक्ष बांग्लादेश का वादा'असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि बांग्लादेश की स्थापना कोई सौदा नहीं था, यह एक ऐतिहासिक अवसर गंवाने सरीखा था। उन्होंने अपने आरोप के समर्थन में छह स्पष्टीकरण पेश करते हुए कहा कि बांग्लादेश की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष वादा था, लेकिन यह एक इस्लामी वास्तविकता बन गया है। भारत ने धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश का समर्थन किया। फिर भी 1988 में इस्लाम को राजकीय धर्म घोषित कर दिया गया। आज ढाका में राजनीतिक इस्लाम पनप रहा है। जो उन मूल्यों को कमजोर कर रहा है, जिनकी रक्षा के लिए भारत ने लड़ाई लड़ी। '20 से सिर्फ 8 फीसदी हिंदू ही बांग्लादेश में बचे'पड़ोसी देश में हिंदुओं के कथित उत्पीड़न के बारे में बात करते हुए हिमंत बिस्व शर्मा ने कहा कि बांग्लादेश की आबादी में अल्पसंख्यक समुदाय की हिस्सेदारी कभी 20 फीसदी हुआ करती थी। सुनियोजित भेदभाव और हिंसा के कारण अब यह घटकर महज 8 प्रतिशत रह गई है। उन्होंने दावा किया कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ सुनियोजित भेदभाव और हिंसा जारी रही और एक शर्मनाक वास्तविकता बन गई। भारत ने इसे बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया। चिकन्स नेक का जिक्रहिमंत शर्मा ने कहा, 'चिकन्स नेक (भू-राजनीतिक स्थिति और संकरी बनावट के कारण संवेदनशील सिलिगुड़ी गलियारा) को असुरक्षित छोड़ दिया गया। सैन्य प्रभुत्व के बावजूद भारत सिलीगुड़ी कॉरीडोर को सुरक्षित करने में नाकाम रहा। उत्तरी बांग्लादेश से होकर एक सुरक्षित भूमि गलियारा पूर्वोत्तर को एकीकृत कर सकता था, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था कभी नहीं अपनाई गई।' बांग्लादेशियों की वापसी पर क्यों नहीं हुआ समझौता?मुख्यमंत्री ने इमिग्रेशन मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा कि अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की अनिवार्य वापसी के लिए कोई समझौता नहीं हुआ। नतीजतन असम, बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में बेलगाम दर से जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहा है। इससे सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो रही है। भारत रणनीतिक रूप से अहम चटगांव बंदरगाह तक पहुंच सुनिश्चित नहीं कर पाया है और पांच दशक बाद भी पूर्वोत्तर क्षेत्र भूमि से घिरा हुआ है। उन्होंने आरोप लगाया कि उग्रवादियों को बांग्लादेश में शरण मिली, पड़ोसी देश कई दशकों तक भारत विरोधी उग्रवादी समूहों के लिए पनाहगाह बना रहा और 1971 में भारत की ओर से की गई चूक का फायदा उठाया गया।
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