इस्तांबुल: पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच इस महीने भीषण सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशों में 19 अक्टूबर को कतर में सीजफायर हुआ था। कतर के बाद दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडलों ने तुर्की के इस्तांबुल में बैठक की है। हालांकि सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए 26 अक्टूबर को इस्तांबुल में हुई दोनों पक्षों की शांति वार्ता विफल होती दिख रही है। लिखित गारंटी, शरणार्थियों की वापसी और व्यापक सुरक्षा चिंताओं पर गतिरोध से समझौते पर संकट खड़ा हो गया है। इससे एक बार फिर लड़ाई छिड़ने का अंदेशा भी पैदा हो गया है।
तालिबान के शीर्ष सूत्रों ने सीएनएन-न्यूज18 को बताया कि इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच शांति वार्ता बहुत अच्छी नहीं रही है। बातचीत में खटास की वजह पाकिस्तान की मनमानी और तालिबान नेतृत्व के प्रति उसका अविश्वास है। इस्लामाबाद ने लिखित आश्वासन मांगा है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) नहीं करेगा। तालिबान ने ऐसी किसी गारंटी से इनकार किया है।
पाकिस्तान जिद छोड़ेतालिबान सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान ने अपनी संप्रभुता और पश्तून आदिवासी भाईचारे पर जोर दिया है। तालिबान ने 15 लाख से अफगान शरणार्थियों के निकालने के पाकिस्तान सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की है। तालिबान ने कहा है कि पाकिस्तान की इस जिद ने मानवीय और कूटनीतिक संकट पैदा कर दिया है।
अफगनिस्तान ने पाकिस्तान पर आतंकवाद-रोधी गारंटी हासिल करने के लिए शरणार्थियों के मुद्दे को राजनीतिक ब्लैकमेल के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। यह बयान रविवार को खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर ताजा झड़पों की खबरों के बाद आया है। झड़पों में कम से कम पांच पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं।
तुर्की, चीन को झटकातुर्की राजनयिक कह रहे हैं कि दोनों पक्षों ने इस्तांबुल का इस्तेमाल सिर्फ मुस्लिम ब्रदरहुड के रूप में राजनयिक जुड़ाव दिखाने के लिए एक प्रतीकात्मक स्थल के रूप में किया। इस बातचीत में दोनों पक्ष किसी नतीजे पर जाते हुए नहीं दिखे हैं। दूसरी ओर यह चीन की चिंता बढ़ाता है। चीन को सीपीईसी-अफगानिस्तान विस्तार के तहत अपने सुरक्षा गलियारे के लिए ये झटका है।
खुफिया सूत्रों के अनुसार, टीटीपी का मुद्दा टकराव की एक बड़ी वजह है। ऐसे में अगर शांति वार्ता में रुकावट आती है तो टीटीपी के फिर से अपना प्रभाव जमाएगा। खासतौर से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान सीमा से लगे इलाकों में वह हमले तेज कर सकता है। इन इलाकों में टीटीपी ने पहले ही पाकिस्तानी सेना के लिए मुश्किल खड़ी की हुई है।
दोनों पक्षों के अपने दावेपाकिस्तान ने तालिबान सरकार पर टीटीपी को नियंत्रित करने के लिए कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया है। पाकिस्तान सरकार का कहना है कि अफगान सीमा से लगे उसके इलाकों में हिंसा के पीछे टीटीपी जिम्मेदार है, जिसने उसके सुरक्षाबलों को लगातार निशना बनाया है। वहीं काबुल ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि पाकिस्तान अपनी सुरक्षा विफलता का दोष उनके सिर ना मढे।
तालिबान के शीर्ष सूत्रों ने सीएनएन-न्यूज18 को बताया कि इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच शांति वार्ता बहुत अच्छी नहीं रही है। बातचीत में खटास की वजह पाकिस्तान की मनमानी और तालिबान नेतृत्व के प्रति उसका अविश्वास है। इस्लामाबाद ने लिखित आश्वासन मांगा है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) नहीं करेगा। तालिबान ने ऐसी किसी गारंटी से इनकार किया है।
पाकिस्तान जिद छोड़ेतालिबान सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान ने अपनी संप्रभुता और पश्तून आदिवासी भाईचारे पर जोर दिया है। तालिबान ने 15 लाख से अफगान शरणार्थियों के निकालने के पाकिस्तान सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की है। तालिबान ने कहा है कि पाकिस्तान की इस जिद ने मानवीय और कूटनीतिक संकट पैदा कर दिया है।
अफगनिस्तान ने पाकिस्तान पर आतंकवाद-रोधी गारंटी हासिल करने के लिए शरणार्थियों के मुद्दे को राजनीतिक ब्लैकमेल के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। यह बयान रविवार को खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर ताजा झड़पों की खबरों के बाद आया है। झड़पों में कम से कम पांच पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं।
तुर्की, चीन को झटकातुर्की राजनयिक कह रहे हैं कि दोनों पक्षों ने इस्तांबुल का इस्तेमाल सिर्फ मुस्लिम ब्रदरहुड के रूप में राजनयिक जुड़ाव दिखाने के लिए एक प्रतीकात्मक स्थल के रूप में किया। इस बातचीत में दोनों पक्ष किसी नतीजे पर जाते हुए नहीं दिखे हैं। दूसरी ओर यह चीन की चिंता बढ़ाता है। चीन को सीपीईसी-अफगानिस्तान विस्तार के तहत अपने सुरक्षा गलियारे के लिए ये झटका है।
खुफिया सूत्रों के अनुसार, टीटीपी का मुद्दा टकराव की एक बड़ी वजह है। ऐसे में अगर शांति वार्ता में रुकावट आती है तो टीटीपी के फिर से अपना प्रभाव जमाएगा। खासतौर से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान सीमा से लगे इलाकों में वह हमले तेज कर सकता है। इन इलाकों में टीटीपी ने पहले ही पाकिस्तानी सेना के लिए मुश्किल खड़ी की हुई है।
दोनों पक्षों के अपने दावेपाकिस्तान ने तालिबान सरकार पर टीटीपी को नियंत्रित करने के लिए कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया है। पाकिस्तान सरकार का कहना है कि अफगान सीमा से लगे उसके इलाकों में हिंसा के पीछे टीटीपी जिम्मेदार है, जिसने उसके सुरक्षाबलों को लगातार निशना बनाया है। वहीं काबुल ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि पाकिस्तान अपनी सुरक्षा विफलता का दोष उनके सिर ना मढे।
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