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हनुमान जी का बजरंग बाण: शक्ति और समर्पण का पाठ

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हनुमान जी के गुण और भक्तों की कामना

लाइव हिंदी खबर :- महाशक्ति पवन पुत्र हनुमान में तीन महत्वपूर्ण गुण समाहित हैं: निरंतरता, विश्वसनीयता और समर्पण। भक्त हनुमान जी से बल, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति की कामना करते हैं। हनुमान चालीसा के दूसरे दोहे में कहा गया है, 'बुद्धिहीन तनु जानके सुमिरव पवन कुमार, बल, बुद्धि, विद्या देव मोहिं हरऊं कलेश विकार।'

इसका अर्थ है कि मैं अपने आप को बुद्धिहीन मानकर, हे हनुमान जी, आपका स्मरण कर रहा हूं। कृपया मुझे बल, विद्या और बुद्धि प्रदान करें ताकि मेरे सभी कष्ट और दोष दूर हो सकें। यह भावना दर्शाती है कि हमारी बुद्धि विश्वसनीय हो, बल में समर्पण हो और विद्या में निरंतरता बनी रहे।


बजरंग बाण का महत्व

कलियुग के देवता माने जाने वाले हनुमान जी के चमत्कारों से सभी परिचित हैं। भक्त कभी हनुमान चालीसा तो कभी बजरंग बाण का पाठ करके उनका गुणगान करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बजरंग बाण कब और क्यों पढ़ा जाता है?

बजरंग बाण कब और क्यों पढ़ें

मान्यता है कि बजरंग बाण का पाठ जीवन की सभी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति और दुखों, कष्टों एवं बाधाओं से मुक्ति के लिए किया जाता है। कहा जाता है कि जिस घर में बजरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहां दुख और बाधाएं नहीं आतीं। यह पाठ दरिद्रता, भूत-प्रेत आदि से भी रक्षा करता है। रोजाना बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए, लेकिन यदि समय नहीं मिल पाता है, तो हर शनिवार और मंगलवार को इसे अवश्य पढ़ें।


बजरंग बाण पाठ विधि

हनुमान जी से संबंधित अन्य पाठों की तरह, बजरंग बाण का पाठ भी सरल है। इसे करने से पहले एक आसन पर बैठ जाएं और मन में हनुमान जी का ध्यान लगाएं। आप चाहें तो उनके चित्र को भी अपने सामने रख सकते हैं। फिर पूरे मन से बजरंग बाण का पाठ करें।

बजरंग पाठ -

दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई :
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥


जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

दोहा :
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥


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