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इस गांव में मर्द पहन रहे हैं औरतों के कपड़े, हैरान करने वाली है वजह

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आपने शायद कभी नहीं सुना होगा कि किसी गांव में पुरुष जानबूझकर महिलाओं के कपड़े पहनते हों, वह भी किसी पारंपरिक उत्सव या थिएटर शो के लिए नहीं, बल्कि किसी अलौकिक शक्ति यानी भूत-प्रेत के डर से। यह अजीब और चौंकाने वाली घटना थाईलैंड के नाखोन फेनम प्रांत के एक छोटे से गांव में देखने को मिली है, जहां पुरुषों को अपनी पहचान छिपाने के लिए महिलाओं के कपड़े पहनने पड़ रहे हैं।

भूत के डर ने बदली गांव की जिंदगी

इस गांव में बीते कुछ समय में 5 पुरुषों की नींद में रहस्यमय मौत हो चुकी है। किसी को हार्ट अटैक नहीं आया, न ही कोई बीमारी थी। सभी स्वस्थ थे लेकिन अचानक नींद में चल बसे। इस रहस्य ने पूरे गांव में डर और अफवाहों को जन्म दे दिया। गांव वालों का मानना है कि इन मौतों के पीछे किसी सामान्य कारण का हाथ नहीं, बल्कि एक विधवा के भूत का साया है।

गांव की मान्यता के अनुसार, यह भूत एक विधवा औरत की आत्मा है जो मरने के बाद भटक रही है और अब वह जवान मर्दों को निशाना बना रही है। खासतौर पर कुंवारे या युवा पुरुषों को। इस डर ने गांव की सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था को पूरी तरह हिला कर रख दिया है।

मर्दों को पहनने पड़े औरतों के कपड़े

भूत से बचने का एक अनोखा उपाय गांव वालों ने ढूंढ निकाला है – मर्दों को महिलाओं के कपड़े पहनाने का। गांव की औरतों ने यह मान लिया है कि अगर उनके पति, बेटे या भाई औरतों की तरह कपड़े पहनेंगे, तो भूत उन्हें पहचान नहीं पाएगा और उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

गांव की गलियों में अब पुरुष साड़ी जैसे कपड़े, स्कर्ट, ब्लाउज और रंग-बिरंगे दुपट्टे पहनकर घूमते नजर आते हैं। यह दृश्य भले ही अजीब लगे, लेकिन वहां के लोगों के लिए यह एक ज़रूरी सुरक्षा उपाय बन गया है। कुछ लोगों ने यहां तक कहा कि यह ट्रिक काम भी कर रही है, क्योंकि और किसी की मौत की खबर नहीं आई।

बिजूका से भी कर रहे भूत को भगाने की कोशिश

महिलाओं के कपड़े पहनने के अलावा गांव वालों ने एक और उपाय अपनाया है – बिजूका (कागज़ या कपड़े से बना मानवाकृति)। लेकिन यह कोई सामान्य बिजूका नहीं है, इसे खास तरीके से बनाया गया है। गांव वालों ने इन बिजूकों के प्राइवेट पार्ट्स बनाए हैं, जिनकी लंबाई करीब 80 सेंटीमीटर रखी गई है।

ये बिजूके घरों के बाहर लगाए जाते हैं ताकि विधवा का भूत उन्हें देखकर डर जाए और घर में दाखिल न हो। गांव वालों का कहना है कि इन "पुरुष प्रतीकों" से भूत भ्रमित हो जाती है और यह सोचकर चली जाती है कि घर में कोई पुरुष पहले से मौजूद है। यही नहीं, बिजूका लगाने के बाद से कोई नई मौत नहीं हुई है, जिससे लोगों का विश्वास इस उपाय में और मजबूत हो गया है।

वैज्ञानिक नजरिया क्या कहता है?

अब सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में कोई भूत इन मौतों का कारण है या फिर यह सिर्फ अंधविश्वास और संयोग का मेल है? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन मौतों के पीछे सडन अरेस्ट सिंड्रोम या सडन अनएक्सप्लेंड नाईट डैथ सिंड्रोम (SUNDS) हो सकता है, जो दक्षिण एशियाई देशों में देखने को मिलता है। इसमें लोग अचानक नींद में मर जाते हैं, जबकि कोई स्पष्ट मेडिकल कारण नहीं होता।

इसके बावजूद, जब किसी गांव में विज्ञान की पहुंच सीमित होती है, तब लोग परंपरा, विश्वास और डर के सहारे समाधान ढूंढने लगते हैं। और इसी के तहत, इस गांव में अजीब लेकिन सांस्कृतिक तौर पर स्वीकार्य उपायों को अपनाया गया है।

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ मामला

जब यह खबर थाई मीडिया से होते हुए डेलीमेल जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्लेटफॉर्म पर पहुंची, तो सोशल मीडिया पर भी तहलका मच गया। कई लोग इसे मजाक समझने लगे, तो कुछ ने इसे एक गहरी सामाजिक समस्या और अंधविश्वास का संकेत माना। लेकिन कुछ लोग गांव वालों की संवेदनशीलता और व्यावहारिक सोच की भी तारीफ कर रहे हैं कि उन्होंने बिना किसी हिंसा या भड़काऊ रवैये के शांति से समाधान ढूंढने की कोशिश की।

निष्कर्ष

थाईलैंड के इस गांव की कहानी हैरान कर देने वाली जरूर है, लेकिन यह यह भी दिखाती है कि कैसे डर, विश्वास और परंपराएं मिलकर एक समाज को दिशा दे सकते हैं – भले ही वह दिशा तर्क से परे क्यों न हो। जहां एक ओर यह मामला वैज्ञानिक जांच की मांग करता है, वहीं दूसरी ओर यह ग्रामीण संस्कृति की लोक मान्यताओं और जीवनशैली को भी उजागर करता है।

यह कहानी एक बार फिर साबित करती है कि हर समाज में अंधविश्वास और समाधान की एक अनोखी दुनिया होती है, जिसे समझना और उसका सम्मान करना भी जरूरी है – भले ही वह दुनिया हमारे सोच से परे क्यों न हो।

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