— कालभैरव मंदिर में और बाहर श्रद्धालु विशाल केक काट कर बाबा का जन्मोत्सव मनाने के लिए तैयार
वाराणसी,11 नवम्बर (Udaipur Kiran) . Uttar Pradesh की धार्मिक नगरी वाराणसी में मार्गशीर्ष (अगहन) माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर बुधवार को काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव सहित अष्टभैरव का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा. बाबा कालभैरव मंदिर सभी सभी भैरव मंदिरों में जन्मोत्सव की तैयारियों को मंगलवार शाम अन्तिम रूप दिया गया.
कालभैरव मंदिर के गर्भगृह सहित बाहरी हिस्से को भी आकर्षक ढ़ंग से सजाया गया है. काशी में अष्टभैरव विराजमान हैं. इसमें दुर्गाकुंड पर चंड भैरव, हनुमानघाट पर रुद्रभैरव, कमच्छा पर क्रोधन भैरव व उन्मत्त भैरव, नखास पर भीषण भैरव, दारानगर में असितांग भैरव, सरैयां में लाट भैरव, गायघाट पर संहार भैरव विराजमान हैं. बाबा कालभैरव के साथ शहर के न्यायाधीश लाटभैरव, बटुकभैरव, रुरु भैरव, आसभैरव, दंडपाणि भैरव, यक्ष भैरव, उन्मत्त भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव और कोडमदेश्वर भैरव मंदिरों में विविध अनुष्ठानों का आयोजन सुबह से ही शुरू हो जाएगा. भगवान शिव के अवतार कालभैरव के प्राकट्योत्सव को लेकर श्रद्धालुओं में भी उत्साह का माहौल है. काशी के कोतवाल के दरबार में उनके विग्रह को पंचामृत स्नान कराने के बाद सिंदूर लेपन कर उन्हें रजत मुखौटा, रुद्राक्ष की माला और नरमुंडों की रजत माला धारण कराई जाएगी. दरबार में शाम को पांच वैदिक ब्राह्मण वसंत पूजा मंत्रोंच्चार के बीच करेंगे. इसके बाद बाबा काे मदिरा का भोग लगाया जाएगा. मंदिर के महंत एवं संरक्षक कैलाश नाथ दुबे, सुरेंद्र दुबे, महेंद्र नाथ दुबे की देखरेख में रात्रि 10 बजे सवा किलो कपूर से बाबा की विराट आरती संपन्न की जाएगी. इस अवसर पर मंदिर परिसर और चौराहे पर श्रद्धालु केक काटकर बाबा का जन्मोत्सव मनाएंगे. मंदिर के भीतर 151 किलो के फलाहारी केक का भोग लगाया जाएगा, जबकि चौराहे पर भक्त 1100 किलो का विशाल फलाहारी केक काटेंगे.
गौरतलब हो कि हर वर्ष मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है. मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान काल भैरव का जन्म हुआ था. काशी में रहने वाले हर व्यक्ति को यहां पर रहने के लिए बाबा काल भैरव की आज्ञा लेनी पड़ती है. मान्यता है कि भगवान शिव ने ही इनकी नियुक्ति यहां की थी. इसी तरह बाबा कपाल भैरव प्रसिद्ध लाट भैरव का दर्शन विशाल लिंगाकार स्वरूप में होता है. अन्य सभी भैरव मूर्त रूप या पिंड रूप में दर्शनीय हैं. किंतु बाबा लाट भैरव लिंग रूप में प्रथम भैरव हैं. इस कारण इन्हें कपालेश्वर महादेव के रूप में भी पूजा जाता हैं. श्रीकपाल भैरव अथवा लाटभैरव प्रबंधक समिति के पदाधिकारियों के अनुसार मंदिर में भव्य अन्नकूट भोग और शृंगार का आयोजन किया जाएगा. विधि विधान से बाबा का पूजन-अर्चन प्रारंभ होगा. बाबा कपाल भैरव काशी में वास करने वाले लोगों के पाप और पुण्य कर्मों का शोधन करने वाले देवता हैं. न्यायाधीश की भूमिका में बाबा कपाल भैरव कर्म के अनुसार काशीवासियों के सद्कर्मों के पुण्य फल तथा पापकर्मों के दंड का विधान तय करते हैं.
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
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