बोकारो, 3 सितंबर (Udaipur Kiran) । जिला प्रशासन की ओर से बुधवार को बीएस सिटी के कैंप टू स्थित जायका हैपनिंग्स सभागार में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में मुख्य अतिथि लेखक और पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा और विशिष्ट अतिथि सहायक प्रोफेसर, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, के डॉ अभय सागर मिंज, उपायुक्त अजय नाथ झा शामिल हुए।
मौके पर उप विकास आयुक्त शताब्दी मजूमदार, अपर समाहर्ता मो मुमताज अंसारी, अनुमंडल पदाधिकारी चास प्रांजल ढ़ांडा, डीसीएलआर चास प्रभाष दत्ता, अनुमंडल पदाधिकारी बेरमो मुकेश मछुआ उपस्थित थे।
कार्यक्रम में अनुज कुमार सिन्हा ने कहा कि दिशोम गुरू जाति और धर्म से ऊपर उठकर सभी वर्गों को साथ लेकर चलते थे। वे मानते थे कि विकास तभी संभव है जब हर तबके की सहभागिता सुनिश्चित हो। उनका जीवन समाज के लिए प्रेरणा है। उनके टीम में सभी धर्म – समाज के लोग होते थे। वह किसी एक धर्म – समाज के नहीं थे।
सिन्हा ने कहा कि रामगढ़ जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर राष्ट्रीय पहचान बनाने वाले दिशोम गुरू शिबू सोरेन ने अपने पिता की हत्या के पीछे छिपे कारण को समझा और शोषणकारी महाजनी प्रथा को जड़ से खत्म करने का संकल्प लिया। अपने अदम्य साहस और संघर्ष से उन्होंने आदिवासी समाज को इस कुप्रथा से मुक्ति दिलाई। उन्होंने हमेशा अपनी मिट्टी – संस्कृति से प्यार करने की बात कहीं। उन्होंने आदिवासी को सम्मान से जीने का हक और अधिकार दिलाया।
सांस्कृतिक चेतना और आत्मपहचान जरूरी
मौके पर विशिष्ट अतिथि डॉ अभय सागर मिंज ने कहा कि आदिवासी का अर्थ केवल जंगल, पत्ता, रंग और नृत्य नहीं है। यह मानसिकता बदलनी होगी। अपनी संस्कृति और अपनी जड़ों को जानकर ही समाज में सहभागिता और विकास संभव है। उन्होंने कहा कि, सांस्कृतिक सापेक्षता के पुरोधा दिशोम गुरू शिबू सोरेन थे। 1970 के दशक में सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढ़ंग से नहीं हो पा रहा था। आदिवासी समाज के विकास के लिए बनाई गई योजनाएं सफल नहीं हो रही थी। ऐसे में यह निर्णय लिया गया कि आदिवासी समाज का विकास कैसे होगा, कौन सी योजनाएं संचालित की जाएं।
विशिष्ट अतिथि डॉ अभय सागर मिंज ने अपने वक्तव्य के माध्यम से दिशोम गुरू के जीवन संघर्ष को कई बातों को रखा, जो आज भी काफी प्रासंगिक हैं। उन्होंने सांस्कृतिक सापेक्षता को भी काफी सरल अंदाज में लोगों के समक्ष रखा।
आदिवासी को सिखाने के बजाय उनसे सीखने की रखें चाह
मौके पर उपायुक्त अजय नाथ झा ने दिशोम गुरू शिबू सोरेन से आदिवासी कल्याण आयुक्त के तौर पर हुई भेंट और आदिवासी समाज के विकास पर हुई चर्चा के संबंध में यादें साझा की। उन्होंने कहा कि हमें आदिवासियों को सिखाने के बजाय उनसे सीखने की चाह रखनी होगी। यही समावेशी दृष्टिकोण समाज को मजबूत करेगा।
उपायुक्त ने कहा कि जिस तरह देश के विकास के लिए भारतीय चेतना होना चाहिए। उसी तरह झारखंड के विकास के लिए नीति बनाने और उसे लागू करने वालों के मूल में झारखंडी चेतना का होना आवश्यक है। दिशोम गुरू का विकास मॉडल सर्वांगीण, जन सरोकारों पर आधारित और सामाजिक न्याय से प्रेरित था।
इससे पूर्व, मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि सहित सभी उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने दिशोम गुरू शिबू सोरेन के तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी और नमन किया।
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(Udaipur Kiran) / Vinod Pathak
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