जम्मू-कश्मीर के पलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में हरियाणा के बहादुर लेफ्टिनेंट विनय नरवाल ने अपनी जान गंवाई। लेकिन इस दुखद घटना के बाद उनकी पत्नी हिमांशी नरवाल को सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है। हिमांशी के एक बयान ने कुछ लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई, जिसके चलते उनकी आलोचना हो रही है। इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए ट्रोलिंग को अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। आइए, इस घटना के हर पहलू को समझते हैं।
हिमांशी नरवाल का बयान और विवाद की शुरुआत
पलगाम आतंकी हमले में अपने पति को खोने वाली हिमांशी नरवाल ने हाल ही में एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा कि उनके पति के हत्यारों को सजा मिलनी चाहिए, लेकिन इस घटना के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय या कश्मीरियों को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। हिमांशी ने शांति की अपील करते हुए कहा, "हम चाहते हैं कि देश में अमन-चैन बना रहे। मेरे पति के साथ अन्याय करने वालों को सजा मिले, लेकिन नफरत फैलाने से कुछ हासिल नहीं होगा।"
हिमांशी का यह बयान कुछ लोगों को पसंद नहीं आया। सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने उनकी टिप्पणी को गलत तरीके से पेश करते हुए ट्रोल करना शुरू कर दिया। उनके निजी जीवन और विचारों को निशाना बनाया गया, जो न केवल अनुचित है, बल्कि एक महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला भी है।
राष्ट्रीय महिला आयोग का सख्त रुख
हिमांशी नरवाल के खिलाफ हो रही ट्रोलिंग पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजय रहाटकर ने कड़ा ऐतराज जताया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, "पलगाम आतंकी हमले में लेफ्टिनेंट विनय नरवाल सहित कई निर्दोष लोगों की जान गई। इस घटना ने पूरे देश को दुख और गुस्से में डाल दिया। लेकिन विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी को उनके बयान के लिए जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, वह बेहद निंदनीय है।"
विजय रहाटकर ने आगे कहा कि किसी की वैचारिक असहमति को शालीनता के साथ व्यक्त करना चाहिए। किसी महिला को उसके विचारों या निजी जीवन के आधार पर अपमानित करना समाज के मूल्यों के खिलाफ है। महिला आयोग ने इस मामले में उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
ट्रोलिंग: एक सामाजिक बुराई
सोशल मीडिया ने जहां लोगों को अपनी बात रखने का मंच दिया है, वहीं यह ट्रोलिंग जैसी बुराइयों का भी केंद्र बन गया है। हिमांशी नरवाल जैसे लोग, जो अपने दुख को व्यक्त करते हुए शांति की अपील करते हैं, उन्हें भी निशाना बनाया जाता है। यह न केवल उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, बल्कि समाज में नफरत और विभाजन को बढ़ावा देता है।
हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक है, लेकिन असहमति को व्यक्त करने का तरीका मर्यादित होना चाहिए। खासकर तब, जब बात एक ऐसी महिला की हो, जिसने अपने जीवनसाथी को खोया हो। हिमांशी का बयान शांति और एकता की दिशा में था, फिर भी उन्हें ट्रोलिंग का शिकार बनाया गया। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारा समाज वाकई संवेदनशील है?
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