अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी जल्द ही भारत की छह दिवसीय यात्रा पर आ रहे हैं। यह पहली बार है जब तालिबान का कोई इतना सीनियर नेता भारत का दौरा करेगा। इस यात्रा को भारत और तालिबान के बीच रिश्तों में एक नई शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है। मुत्ताकी नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात करेंगे और उत्तर प्रदेश के देवबंद में मशहूर दारुल उलूम मदरसे और आगरा के ताजमहल का दौरा भी करेंगे। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब तालिबान सरकार को अभी तक दुनिया भर में मान्यता नहीं मिली है, और भारत एक संतुलित रिश्ता कायम करना चाहता है।
मुत्ताकी की यात्रा का शेड्यूल
सूत्रों के मुताबिक, मुत्ताकी 11 अक्टूबर को पांच सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली पहुंचेंगे। इस दल में उप उद्योग और वाणिज्य मंत्री अहमदउल्लाह जाहिद, विदेश मंत्रालय के दक्षिण एशिया मामलों के महानिदेशक नूर अहमद नूर और प्रवक्ता जिया अहमद ताकल शामिल हैं। भारत सरकार उन्हें पूरा सरकारी प्रोटोकॉल देगी। उनकी सबसे अहम मुलाकात विदेश मंत्री जयशंकर के साथ हैदराबाद हाउस में होगी।
जयशंकर के साथ क्या होगी बात?
यह मुत्ताकी और जयशंकर की पहली आमने-सामने मुलाकात होगी। पहले दोनों नेताओं ने फोन पर बात की थी। इस बैठक में सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे बड़े मुद्दों पर चर्चा होगी। इसके अलावा, अफगान छात्रों, व्यापारियों और मरीजों के लिए वीजा नियमों को आसान करने पर भी बात हो सकती है। तालिबान की भारत में मौजूदगी और प्रभाव को लेकर भी चर्चा की उम्मीद है।
देवबंद मदरसे का दौरा क्यों खास?
11 अक्टूबर को मुत्ताकी देवबंद के दारुल उलूम मदरसे जाएंगे, जिसे तालिबान के कई नेता सम्मान की नजर से देखते हैं। इस मदरसे की तर्ज पर पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा में दारुल उलूम हक्कानिया मदरसा बना था, जहां कई तालिबान कमांडर और नेता पढ़े हैं। हक्कानिया के संस्थापक मौलाना अब्दुल हक ने भारत के बंटवारे से पहले देवबंद में पढ़ाई की थी। तालिबान कमांडरों के निर्माण में इस मदरसे की अहम भूमिका रही है।
ताजमहल और व्यापार पर फोकस
12 अक्टूबर को मुत्ताकी आगरा में ताजमहल का दीदार करेंगे। अगले दिन, 13 अक्टूबर को वे नई दिल्ली में उद्योग मंडल के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे और व्यापार जगत के लोगों से मिलेंगे। तालिबान भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर जोर दे रहा है। इसी दिन वे अफगान समुदाय से भी मिलेंगे। उनकी यह यात्रा 15 अक्टूबर को काबुल लौटने के साथ खत्म होगी।
भारत-तालिबान रिश्तों में क्यों अहम है यह दौरा?
यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव है। पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को समर्थन दे रहा है। पिछले महीने मुत्ताकी की यात्रा रुक गई थी क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों से उन्हें छूट नहीं मिली थी, जो बाद में भारत के दखल पर 30 सितंबर को मिली। इस यात्रा का मकसद तालिबान सरकार को वैश्विक मान्यता दिलाना और भारत के साथ मजबूत रिश्ते बनाना है। विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान ने भारत के खिलाफ कोई नकारात्मक बयान नहीं दिया है। मुत्ताकी मुंबई, हैदराबाद और चाबहार बंदरगाह भी जाएंगे, जहां वे व्यापार और निवेश के मौके तलाशेंगे।
चाबहार बंदरगाह: व्यापार का गेटवे
चाबहार बंदरगाह भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार का बड़ा रास्ता है। इस बंदरगाह पर अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत को 28 अक्टूबर तक छूट मिली है, जो क्षेत्रीय संपर्क के लिए जरूरी है। इस पर भी मुत्ताकी के साथ बात होने की संभावना है।
मॉस्को मीटिंग में भारत का साथ
इस यात्रा से पहले मॉस्को में मॉस्को फॉर्मेट की बैठक हुई थी, जिसमें भारत ने अफगानिस्तान के उस प्रस्ताव का समर्थन किया था जिसमें बगराम एयरबेस को अमेरिका को सौंपने की बात थी। यह दिखाता है कि भारत अफगानिस्तान के शांतिपूर्ण और स्थिर भविष्य में अहम भूमिका निभाना चाहता है।
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