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प्रेम कविता : तुम्हारा जाना

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मैंने तुम्हें पाया नहीं,

पर खो भी नहीं सका

क्योंकि तुम वो स्पर्श थीं

जो छू लेने के बाद भी

अधूरी ही रह जाती हैं।

तुम्हारा जाना

कोई विदाई नहीं था,

वह तो एक चुप स्वीकृति थी

कि कुछ प्रेम

सिर्फ होने के लिए होते हैं,

मिलने के लिए नहीं।

मैंने तुम्हें बांधने की कोशिश नहीं की

प्रेम था,

संपत्ति नहीं।

तुम्हें जाने दिया

जैसे बादल छोड़ देता है जल,

यह जानते हुए भी

कि धरती उसी में डूबेगी,

पर वह स्वयं कभी नहीं लौटेगा।

कभी कभी,

त्याग ही वह भाषा होती है

जिसमें प्रेम सबसे पूर्ण होता है।

और मैं उस भाषा में

रोज़ एक कविता लिखता रहा

तुम्हारे नाम की छाया में।

दर्द कोई शिकायत नहीं रहा अब,

वह तो बस

एक आदत सी बन गई है

तुम्हारी अनुपस्थिति की गंध में

हर सुबह सांस लेना।

तुमसे प्रेम करना

मेरे भीतर की नदी बन गया

बहती रही,

पर किनारों से कभी कुछ न कहा।

बस हर बार

जब तुम्हारा नाम भीतर गूंजा,

मैं टूट कर मुस्कराया

जैसे कोई दीपक

अंतिम बार जलता है।

प्रेम कोई मांग नहीं करता,

वह सिर्फ देता है

और तुमसे प्रेम कर

मैं यह सीख गया हूं

कि कुछ देने के लिए

कभी-कभी

पूरे स्वयं को खो देना पड़ता है।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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